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________________ tfsअणुओगद्दारे ओग्गहादीण पज्जायसद्दा ५,५,४०. ) संपहि अवायस्स एयट्ठपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि अवायो ववसायों बुद्धी विष्णाणी आउंडी पच्चाउंडी* ॥३९॥ अवेयते निश्चीयते मीमांसितोऽर्थोऽनेनेत्यवायः । व्यवसीयते निश्चीयते अन्वेषितोऽर्थोऽनेनेसि व्यवसायः । ऊहितोऽर्थो बुद्धयते अवगम्यते अनया इति बुद्धिः । विशेरूपेण ज्ञायते तक्कितोऽर्थोनया इति विज्ञप्तिः । आमुंडयते संकोच्यते विर्ताकतोऽर्थः अनति आमुंडा । प्राकृते ' एदे छच्च समाणा ' इत्यनेन ईत्वम् । प्रत्यर्थ मामुंडयते संकोच्यते मीमांसितोऽर्थः अनयेति प्रत्यामुंडा । संपहि धारणाए एयट्ठपरूवणमुत्तरसुत्तं भणदि - ( २४३ धरणी धारणा* ट्ठवणा कोट्ठा पविट्ठा ।। ४० ।। धरणीव बुद्धिर्धरणी । यथा धरणी गिरि-सरित् सागर- वृक्ष- क्षपाइमादीन् धारयति तथा निर्णीतमर्थं या बुद्धिर्धारयति सा धरणी णाम । धार्य्यते निर्णीतोऽर्थः अनया इति धारणा । स्थाप्यते अनया निर्णीतरूपेण अर्थ इति स्थापना | कोष्ठा इव कोष्ठा । कोष्ठा नाम कुस्थली, तद्वन्निर्णीतार्थं धारयतीति कोष्ठेति भण्यते । द्वारा मीमांसित किया जाता है अर्थात् विचारा जाता है वह मीमांसा है । अब अवायके एकाका कथन करने के लिये आगेका सूत्र कहते हैं अवाय, व्यवसाय, बुद्धि, विज्ञप्ति, आमुंडा और प्रत्यामुंडा ये पर्याय नाम हैं । ३९ । जिसके द्वारा मीमांसित अर्थ 'अवेयते' अर्थात् निश्चित किया जाता है वह अवाय है । जिसके द्वारा अन्वेषित अर्थ ' व्यवसीयते' अर्थात् निश्चित किया जाता है वह व्यवसाय हैं । जिसके द्वारा ऊहित अर्थ 'बुद्धयते' अर्थात् जाना जाता है वह बुद्धि हैं । जिसके द्वारा तर्कसंगत अर्थ विशेषरूप से जाना जाता है वह विज्ञप्ति है । जिसके द्वारा वितर्कित अर्थ 'आमुंडयते' अर्थात् संकोचित किया जाता है वह आमुंडा है । प्राकृत में 'एदे छच्च समाणा इस नियम के अनुसार यहां ईत्व हो गया है । जिसके द्वारा मीमांसित अर्थ अलग अलग 'आमुंडयते ' अर्थात् संकोचित किया जाता है वह प्रत्यामुंडा है । अब धारणा ज्ञानके एकार्थोंका ज्ञान करानेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं । ' धरणी, धारणा, स्थापना, कोष्ठा और प्रतिष्ठा ये एकार्थ नाम हैं । ४० । धरणी समान बुद्धिका नाम धरणी है । जिस प्रकार धरणी ( पृथिवी ) गिरि, नदी, सागर, वृक्ष, झाडी और पत्थर आदिको धारण करती है उसी प्रकार जो बुद्धि निर्णीत अर्थको धारण करती है वह धरणी है। जिसके द्वारा निर्णीत अर्थ धारण किया जाता है वह धारणा जिसके द्वारा निर्णीत रूपसे अर्थ स्थापित किया जाता है वह स्थापना है । कोष्ठाके समान बुद्धिका नाम कोष्ठा है । कोष्ठा कुस्थलीको कहते हैं । उसके समान जो निर्णीत अर्थको धारण करती है वह बुद्धि कोष्ठा कही जाती है । जिसमें विनाशके विना पदार्थ प्रतिष्ठित रहते हैं वह बुद्धि प्रतिष्ठा है । 1 Jain Education International तस्स णं इमे एगट्टिआ नाणाघोसा नाणावंजणा पंच णामधिज्जा भवंति 1 तं जहा- आउट्टणया पच्चाउट्टणया अवाए बुद्धी विष्णाणे । से तं अवाए । नं सू. ३३. ॐ अ-आ-ताप्रतिषु ' धारणी इति पाठः । X तीसे णं इमे एगट्ठआ नाणाघोसा नाणावंजणा पंच नामधिज्जा भवति । तं जहा - धरणा धारणा ठवणा पट्टा कोट्ठे से त्तं धारणा । नं सू. ३४ ताप्रतावतः पाकू ( स्थाप्यते अनया इति धारणा ) इत्येतावानयं 1 कोष्ठकान्तर्गतोऽधिकः पाठोऽस्ति 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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