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५, ५, ३५. ) पयडिअणुओगद्दारे आभिणिबोहियणाणपरूवणा ( २३७ प्रकारार्थे विधशब्दः, बहुविधं बहुप्रकारमित्यर्थः । जातिगतभूयःसंख्या विशिष्ट वस्तु प्रत्ययो बहुविधः । तद्यथा- चक्षुर्जः गो-मनुष्य-हय-हस्त्यादिजातिविशिष्टगवादिविषयोऽक्रमः प्रत्ययः । श्रोत्रजस्तत-वितत- घन--सुषिरादिशब्देष्वक्रमवृत्तिप्रत्ययः । कर्पूरागरु तरुष्क* चन्दनादिगन्धेष्वक्रमवृत्तिः घ्राणजो बहुविधप्रत्ययः । तिक्त कटुकषायाम्ल-मधुर-लवणद्रव्यविषयः अक्रमवृत्तिः रसनजो बहुविधप्रत्ययः स्निग्ध मृदुकठिनोष्ण गुरु-लघु-शीतादिद्रव्यविषयः अक्रमवृत्तिर्बहुविधः प्रत्ययः स्पर्शनेन्द्रियजः। न चायमसिद्धः, उपलभ्यमानत्वात् न चोपलम्भः अपह नोतुं पार्यते, अव्यवस्थापत्तेः।
एकजातिविषयः प्रत्ययः एकविधः । न चैकविधैकप्रत्ययोरेकत्वम्, जातिव्यक्त्योरेकत्वाभावतस्तद्विषयप्रत्ययोरेकत्वाभावात आश्वर्थग्राही क्षिप्रप्रत्ययः । अभिनवशरावगतोदकवत् शनैः परिच्छिन्दानः अक्षिप्रप्रत्ययः ।।
वस्यकदेशत्वे आलम्बनीभूतस्य ग्रहणकाले एक वस्तुप्रतिपत्तिः वस्त्वेकदेशप्रतिपत्तिकाल एव वा दृष्टांतमुखेन अन्यथा वा अनवलम्बित - वस्तुप्रतिपत्तिः अनुसंधानप्रत्ययः प्रत्यभिज्ञानप्रत्ययश्च अनिःसृतप्रत्ययः । न चायमसिद्धः, चक्षुषा घटस्यालम्बनीभूतार्वाग्भागदर्शन काल एव
___विध शब्द प्रकारवाची है, बहुविध अर्थात् बहुप्रकार । जातिगत बहुत संख्या विशिष्ट पदार्थोंका ज्ञान बहुविधज्ञान है। यथा- गाय, मनुष्य, घोडा और हाथी आदि जाति विशिष्ट गाय आदि पदार्थोको विषय करनेवाला क्रमरहित प्रत्यय चाक्षुष बहुविधप्रत्यय है । तत, वितत,घ न व सुषिर आदि शब्दोंका युगपत् होनेवाला प्रत्यय श्रोत्रज बहुविधप्रत्यय है | कपूर, अगरु, तुरुष्क और चन्दन आदिकी गन्धोंका युगपत् होनेवाला प्रत्यय घ्राणज बहुविधप्रत्यय है । तिक्त, कटु, कषाय, आम्ल, मधुर और लवण द्रव्यविषयक: युगपत् होनेवाला प्रत्यय रसनज बहुविधप्रत्यय है। स्निग्ध, मदु, कठिन, उष्ण, गुरु, लघु और शीत आदि द्रव्यविषयक युगपत् होनेवाला प्रत्यय स्पर्शनेन्द्रियज बहुविधप्रत्यय है । ऐसा प्रत्यय होना असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि, उसकी उपलब्धि होती है । और उपलब्धिका अपलाप किया नहीं जा सकता, क्योंकि, ऐसा करनेपर अव्यवस्थाकी आपत्ति आती है।
___ एक जातिविषयक प्रत्यय एकविधप्रत्यय है । एकविधप्रत्यय और एकप्रत्ययको एक नहीं मान सकते, क्योंकि, जाति और व्यक्ति एक नही होनेसे उनको विषय करनेवाले प्रत्यय भी एक नहीं हो सकते । शीघ्र अर्थको ग्रहण करनेवाला क्षिप्रप्रत्यय है। जिस प्रकार नतन सकोरेको प्राप्त हुआ जल उसे धीरे धीरे गीला करता है उसी प्रकार पदार्थको धीरे धीरे जाननेवाला प्रत्यय अक्षिप्र प्रत्यय है । अवलम्बनीभूत वस्तुके एकदेश ग्रहणके समयमें ही एक वस्तुका ज्ञान होना, या वस्तुके एकदेशके ज्ञानके समयमें ही दृष्टांतमुखेन या अन्य प्रकारसे अनवलम्बित वस्तुका ज्ञान होना तथा अनुसंधानप्रत्यय और प्रत्यभिज्ञानप्रत्यय'; यह सब अनिःसृतप्रत्यय है । यह असिद्ध भी नहीं है, क्योंकि, चक्षुके द्वारा घटके अवलम्बनीभूत
*ताप्रती 'विशिष्टं वस्तु' इति पाठ:1:ताप्रतो । तरुष्क ' इति पाठः । ४ ताप्रती । विषय: कविधः' इति पाठः। काप्रती एकजातिविषयः प्रत्ययोरेकत्वाभावात 'इति पाठ ।
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