SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५,५,२८. ) tfsअणुओगद्दारे अत्थोग्गहावरणीयपरूवणा ( २२७ चक्खि दियत्थोग्गहावरणीयं सोबिंदियअत्योग्गहावरणीयं घाणिदियअत्थोग्गहावरणीयं जिर्भावय अत्योग्गहावरणीयं फासिंदियअत्थोंगहावरणीयं णोइंदियअत्थोग्गहावरणीयं । तं सव्वं अत्थोग्गहावरणीयं णाम कम्मं ॥ २८ ॥ तत्थ सणिपंचिदियपज्जत्तएसु चक्खि दिय उक्कस्सअत्थोग्गहो सत्तेतालसहस्सबेसदसद्विजोयणाणि साहियाणि ओसरिय द्विदअत्थे समुपज्जदि ४७२६३ । ७ । २० । असणिपचदियपज्जत्तए चक्खि दियस्स अत्थोग्गहविसओ उक्कस्सो ऊपसट्टिजोयणसदाणि अट्ठत्तराणि ५९०८ । चउरिदियपज्जत्तएसु चक्खिदियअत्थोग्गहविसओ खेत्तालंबणो उक्कस्सओ ऊणती सजोयणसदाणि चडवण्णजोयणब्भहियाणि २९५४ । चक्खि दिया दो एत्तियाणि जोयणाणि अंतरिय द्विददव्वे जं णाणमुपज्जदि सो चक्खिदियअत्थोग्गहो । तस्स जमावरणं तं चक्खिदियअत्थोग्गहावरणीयं नाम कम्मं । सष्णिपंचिदियपज्जत्तएसु जवणालियसंठाणसंठिदसोविदियअत्थोमहविसओ खेत्तालवणो उक्कस्सओ बारहजोयणाणि १२ । असणिपंचिदियपज्जतसु अट्ठधणुसहस्साणि ८००० । एत्तियमद्धाणमंतरिय द्विदसद्दग्गहणं सोदिदियअत्थोग्गहो णाम । एदस्त जमावारयं कम्मं तं सोदिदियअत्थोग्गहावरणीयं । सणिचदियपज्जत्तसु घाणिदियस्स विसओ उक्कस्सओ खेत्तगओ णव जोयणाणि ९ । चक्षुइन्द्रिय अर्थावग्रहावरणीय, श्रोत्रेन्द्रियअर्थावग्रहावरणीय, घ्राणेन्द्रियअर्थावग्रहावरणीय, जिह, वेन्द्रियअर्थावग्रहावरणीय, स्पर्शनेन्द्रियअर्थावग्रहावरणीय और इन्द्रिय अर्थावग्रहावरणीय; यह सब अर्थावग्रहावरणीय कर्म है ॥ २८ ॥ उनमें से संज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्त जीवोंमें चक्षु इन्द्रियका उत्कृष्ट अर्थावग्रह साधिक सेंतालीस हजार दो सौ त्रेसठ ( ४७२६३.) योजन हटकर स्थित हुए पदार्थ में उत्पन्न होता है । असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकों में चक्षुइन्द्रिय सम्बन्धी अर्थावग्रहका उत्कृष्ट विषय पांच हजार नौ सौ आठ ( ५९०८ ) योजन है । चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकों में क्षेत्रके आलम्बनसे चक्षुइन्द्रिय सम्बन्धी उत्कृष्ट अर्थावग्रहका विषय दो हजार नौ सो चौवन ( २९५४ ) योजन है । चक्षु इन्द्रियसे इतने योजना अन्तर देकर स्थित हुए द्रव्योंका जो ज्ञान होता है वह चक्षुइन्द्रियअर्थावग्रह है । उसका जो आवारककर्म है वह चक्षुइन्द्रिय-अर्थावग्रहावरणीय कर्म है । संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्तकों में जौकी नालीके आकारसे स्थित श्रोत्रेंद्रिय सम्बन्धी क्षेत्रके आश्रित उत्कृष्ट अर्थावग्रहका विषय बारह (१२) योजन है । असंज्ञो पंचेद्रिय पर्याप्तकों में वह आठ हजार (८०००) धनुष है । इतने क्षेत्रका अन्तर देकर स्थित हुए शब्दका ग्रहण करना श्रोत्रेन्द्रियअर्थावग्रह और इसका जो आवारक कर्म है वह श्रोत्रेन्द्रिय-अर्थावग्रहावरणीय कर्म है । संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्तकों में घ्राणेन्द्रिय सम्बन्धी उत्कृष्ट क्षेत्रगत विषय नौ (९) योजन है । + से कि तं अत्थुग्गहे ? अत्युग्गहे छव्विहे पण्णत्ते । तं जहा- सोइंदिअअत्युग्गहे चक्खि दिअअत्युग्गहे घाणिदिअअत्युग्गहे जिभि दिअअत्युग्गहे फासिंदिअअत्युग्गहे नोइंदिअकत्थुग्गहे 1 नं. सू. ३०. अ- आप्रत्योः २० । २७ का ताप्रत्योः २७1२० इति पाठः । ताप्रती 'पज्जत्तेसु' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy