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________________ १८० ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ४, ३१. इरियावकम्मदव्वदा । तवोकम्मदवढदा संखेज्जगुणा । किरियाकम्मदव्वटुवा असंखेज्जगुणा। पओअकम्म-समोदाणकम्मदव्वट्ठदाओ दो वि सरिसाओ विसेसाहियाओ। केत्तियमेत्तेण? इरियावथकम्मदव्वट्ठदामेत्तेण अपुव्वं-अणियट्टि-सुहुमजीवमेत्तेण च । आधाकम्मदव्वट्टदा अणंतगुणा । एवमोहिदंसणीणं पि वत्तव्वं । सम्माइटि-खहय - सम्माइट्ठीणं च एवं चेव वत्तव्वं । वरि पओअकम्मदव्वट्ठदाए उवरि समोदाणकस्मदव्वटदा विसेसाहिया । मणपज्जवणाणीसु सव्वत्थोवा इरियावथकम्मदव्वट्ठदा। किरियाकम्मदवढदा संखेज्जगुणा । पओअकम्म-समोदाणकम्मतवोकम्मदवढदाओ तिणि वि सरिसाओ विसेसाहियाओ। आधाकम्मदव्वटदा अणंतगुणा। संजमाणुवादेण संजदेसु सव्वत्थोवा इरियावथकम्मदव्वद्वदा । किरियाकम्मदवढदा संखेज्जगुणा । पओअकम्मदवट्टदा विसेसाहिया। केत्तियमेत्तेण? इरियावथकम्मदव्वदामेत्तेण अपुव्व-अणियट्टि-सुहुमेहि य । समोदाणकम्म-तवोकम्मदव्वटुवाओ दो वि सरिसाओ विसेसाहियाओ । केत्तियमेत्तेण? अजोगिजीवमेत्तेण । आधाकम्मदव्वदा अणंतगुणा । सामाइय-छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदेसु सव्वत्थोवा किरियाकम्मदव्व. टुवा । पओअकम्म-समोदाणकम्म-तवोकम्मदव्वट्ठदाओ तिणि विसरिसाओ विसेसासबसे स्तोक है। इससे तपःकर्मकी द्रव्यार्थता संख्यातगुणी है। इससे क्रियाकर्मकी द्रव्यार्थता असंख्यातगुणी है । इससे प्रयोगकर्म समवधानकर्मकी द्रव्यार्थतायें दोनों ही समान होकर विशेष अधिक हैं । कितनी अधिक है ? जितनी ईर्यापथ कर्मकी द्रव्यार्थता है और जितनी करण, अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्पराय जीवोंकी संख्या है उतनी अधिक हैं । इनसे अधःकर्मकी द्रव्यार्थता अनन्त गुणी है। इसी प्रकार अवधिदर्शनवाले जीवोंके भी कहना चाहिये । सम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंके भी इसी प्रकार कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके प्रयोगकर्मकी द्रव्यार्थतासे समवधानकर्मकी द्रव्यार्थता विशेष अधिक है। मनःपर्ययज्ञानियोंमें ईर्यापथकर्मकी द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है। इससे क्रियाकर्मकी द्रव्यार्थता संख्यातगणी है। इससे प्रयोगकर्म, समवधानकर्म और तपःकर्मकी द्रव्यार्थतायें तीनों ही समान होकर विशेष अधिक हैं। इनसे अधःकर्मकी द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है। __ संयममार्गणाके अनुवादसे संयतोंमें ईर्यापथकर्मकी द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है। इससे क्रियाकर्मकी द्रव्यार्थता संख्यातगुणी है। इससे प्रयोगकर्मकी प्रव्यार्थता विशेष अधिक है। कितनी अधिक है ? जितनी ईर्यापथकर्मकी द्रव्यार्थता है और जितनी अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्परायकी संख्या है उतनी अधिक है। इससे समवधानकर्म और तपःकर्मकी द्रव्यार्थतायें दोनों ही समान होकर विशेष अधिक हैं। कितनी अधिक है ? अयोगिकेवलियोंकी जितनी संख्या है उतनी अधिक हैं । इनसे अधःकर्मकी द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है। सामायिकसयत और छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत जीवोंमें क्रियाकर्म की द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है। इससे प्रयोगकर्म, समवधानकर्म और तपःकर्मकी द्रव्यार्थतायें तीनों ही समान होकर विशेष अधिक हैं। कितनी * अप्रतौ घेत्तव्वं ' इति पाठः ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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