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________________ ५, ४, ३१. ) कमाणुओगद्दारे पओअकम्मादीनं अप्पाबहुअं ( १७९ वेदानुवादेण इत्थि पुरिसवेदेसु सव्वत्थोवा तवोकम्मदव्वद्वदा । किरियाकम्मददा असंखेज्जगुणा । पओअकम्म-समोदाणकम्मदव्वद्वदाओ दो वि सरिसाओ असंखेज्जगुणाओ ! आधाकम्मदव्वट्ठदा अनंतगुणा । एवं णवंसयवेदेसु विवत्तव्वं । वरि आधाकम्मस्सुवरि पओअकम्म-समोदाणकम्माणं दव्वद्वदाओ दो वि सरिसाओ अनंतगुणाओ । अवगदवेदेसु सव्वत्योवाइरियावय कम्मदव्वदट्ठा | पओअकस्मदव्वदा विसेसाहिया । समोदाणकम्मतवो कम्मदव्वट्टदाओ दो वि सरिसाओ विसेसाहियाओ । केत्तियमेत्तेण ? अजोगिरासिमेत्तेण । आधाकम्मदव्वट्टदा अनंतगुणा । कसायानुवादेण चदुष्णं कसायाणं सव्वपदाणं णवंसयवेदभंगो । अकसाएसु सव्वत्थोवा इरिया हम्म पओअकम्मदव्वदाओ । समोदाणकम्म- तवोकम्माणं दाओ दो विसरिसाओ विसेसाहिओ । आधाकम्मदव्वदृदा अनंतगुणा । एवं केवलणाणि केवलवंसणि-जहावखाद बिहारसुद्धिसंजदे त्ति वत्तव्वं । णाणाणुवादेण विभंगणाणीणं पंचिदियतिरिक्ख अपज्जत्तभंगो । आभिणि-सुद-ओहिणाणीसु सव्वत्योवा अधिक कही है। शेष कथन सुगम है । वेदमार्गणा अनुवादसे स्त्रीवेदवाले और पुरुषवेदवाले जीवों में तपःकर्म की द्रव्यार्थता सबसे स्तोक हैं । इससे क्रियाकर्मकी द्रव्यार्थता असंख्यातगुणी हैं। इससे प्रयोगकर्म और समवधान कर्म की द्रव्यार्थतायें दोनों ही समान होकर असंख्यातगुणी हैं । इनसे अधः कर्म की द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है। इसी प्रकार नपुंसकवेदवालोंके भी कहना चाहिये। इतनी विशेषता है कि इनके अध:ककी द्रव्यार्थतासे प्रयोगकर्म और समवधानकर्म की द्रव्यार्थतायें दोनों ही समान होकर अनन्तगुणी हैं । अपगतवेदवालों में ईर्यापथकर्म की द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है । इससे प्रयोगकर्म की द्रव्यार्थता विशेष अधिक है | ( कितनी अधिक है? अपगतवेदी अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्पराय जीवोंकी जितनी संख्या है उतनी अधिक है ।) इससे समवधानकर्म और तपःकर्म की द्रव्यार्थतायें दोनों ही समान होकर विशेष अधिक है ? कितनी अधिक है ? अयोगकेवलियोंकी जितनी संख्या है उतनी अधिक है । इससे अधः कर्म की द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है । कषायमार्गणाके अनुवादसे चारों कषायवालोंके सब पदोंका कथन नपुंसक वेदवालोंके समान है । कषायरहित जीवोंमें ईर्यापथकर्म और प्रयोगकर्म की द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है । इससे समवधानकर्म और तपःकर्म की द्रव्यार्थताये दोनों ही समान होकर विशेष अधिक हैं। इनसे अधःकर्मकी द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है। इसी प्रकार केवलज्ञानी, केवलदर्शनी और यथाख्यातविहारशुद्विसंयतोंके कहना चाहिये। ज्ञानमार्गणा के अनुवाद से विभंगज्ञानियोंके पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकों के समान भंग है। आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें ईर्यापथकर्म की द्रव्यार्थता • अ आ-का-प्रतिषु अवगदवेदेसु सव्वत्थोवा इरियावथकम्मदव्वदा विसेसाहिया समोदाणकम्म- ' तातो' अवगदवेदेसु सव्वत्थोवा इरियावथकम्म (पओअकम्म ) दव्वदाओ 1 ( दो वि सरिसाओ अणतगुणाओ 1 अवगदवेदेसु सव्वत्थोवा इस्यिावथकम्मदव्वद्वदा विसेसाहिया ) समोदाणकम्म-' इति पाठ: : अ आ-काप्रतिषु कम्माणं ताप्रती ' कम्माणं ( कसायाणं ) ' इति पाठ | Jain Education International 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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