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________________ १४० ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड (५, ४, ३१. णाणेगजीवं पड़च्च पत्थि अंतरं णिरंतरं । किरियाकम्मस्स अंतरं केवचिरं कालादो होदि? जाणाजीवं पडुच्च पत्थि अंतरं णिरंतरं। एगजीवं पडच्च जहण्णण अंतोमुहुत्तं । उक्कस्सेण एक्कत्तीससागरोवमाणि देसूणाणि । कुदो? एक्को संजदो उवसमसेडि चडिदूण णियत्तो* असंजदसम्मादिटिट्ठाणे दव्वसंजमेण दीहमुवसमसम्मत्तद्धमणुपालेदूग कालं गदो । उवरिम उवरिमगेवज्जे उववण्णो । किरियाकम्मस्स आदी द्विदा । उवसमसम्मत्तद्धाए छआवलियाओ अस्थि त्ति सासणं गदो। अंतरिदो । तदो एक्कत्तीसण्हं सागरोवमाणं सव्वजहण्णंतोमहत्तावसेसे उसमसम्मत्तं पडिवण्णो । लद्धमंतरं । सासणं गंतूण मदो मणुस्सो जादो । एवं बेहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणएक्कत्तीससागरोवममेत्तउक्कस्संतरुवलंभादो। भवणवासिय-वाणवेंतर-जोदिसियदेवेसु पओअकम्म-समोदाणकम्माणं गाणेगजीवं पडुच्च गस्थि अंतरं णिरंतरं । ए सव्वेदेवाणं वत्तां । किरियाकम्मस्संतर केचिर कालादो होदि? णाणाजीनं पडुच्च णथि अंतरं णिरतरं । एगजीनं पडुच्च जहण्णेण अतोमुहुत्तं । उवकस्सेण पंचहि अतोमुत्तेहि ऊणियं दिवडसागरोवमं पलिदोवमं सादिरेयं पलिदोवमं सादिरेयं । सोहम्मप्पहुडि जाव सदर-सहस्सारदेवे त्ति ताव किरियाकम्मरस अंतरं केर्वाचरे कालादो होदि ? जाणाजीनं पडुच्च देवभंगो । एगजीयं पड़च्च जहण्णण अतोमहत्तं । कुदो ? सम्माइटिस्स सव्वलहुं और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है, वह निरन्तर है। क्रियाकर्मका अन्तरकाल कितना है? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है, वह तिरन्तर है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहुर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम इकतीस सागर है, क्योंकि, एक संयत जीव उपशमश्रेणिपर चढकर उतरते हुए असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें द्रव्य संयमके साथ उपशमसम्यक्त्वके दीर्घ काल तक उसका पालन कर मरा और उपरिमउपरिम अवेयकमें उत्पन्न होकर क्रियाकर्मका प्रारम्भ किया । फिर उपशमसम्यक्त्वको कालमें छह आवलि काल शेष रहनेपर सासादन गुणस्थानको प्राप्त होकर उसका अन्तर किया । तदनन्तर इकतीस सागरमें सबसे जघन्य अन्तर्मुहुर्त काल शेष रहनेपर उपशमसम्यक्त्वके प्राप्त हुआ । इस प्रकार क्रियाकर्मका उत्कृष्ट अन्तरकाल प्राप्त हो जाता है । फिर सासादन गुणस्थानको प्राप्त होकर मरा और मनुष्य हो गया । इस प्रकार क्रियाकर्मका दो अन्तर्मुहूर्त कम इकतीस सागर प्रमाण उत्कृष्ट अन्तरकाल पाया जाता है। भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें प्रयोग कर्म और समवधानकर्मका नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है, वह निरन्तर है । इसी प्रकार सब देवोंके कहना चाहिये । क्रियाकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नही है, वह निरन्तर है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहुर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल क्रमसे पांच अन्तर्मुहुर्त कम डेढ़ सागर, पांच अन्तर्मुहूर्त कम साधिक एक पल्य और पांच अन्तर्मुहूर्त कम साधिक एक पल्य है। सौधर्म कल्पसे लेकर शतार-सहस्रार कल्प तकके देवोंमें क्रियाकर्मका अन्तरकाल कितना है? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकालका विचार सामान्य देवोंके समाना है। * अ-आ-काप्रतिषु णेयंतो ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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