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________________ १३० ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ४, ३१. संजमं पडिवण्णो । देसूणपुव्वकोडि तवोकम्मं कादूण देवो जादो। एवं गब्भादिअटूवस्सेहि ऊणपुवकोडिमेत्ततवोकम्मुक्कस्सकालुवलंभादो।। उवसमसम्माइट्ठीसु पओअकम्म--समोदाणकम्म- -किरियाकम्माणि केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुत्तं । उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखज्जदिभागो । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमहत्तं कुवो? एक्को चदुगदियो तिण्णि वि करणागि कादूण उवसमसम्माइट्ठी जादो । सवजहणियाए उवसमसम्मत्तद्धाए अब्भंतरे छ आवलियाओ अस्थि ति सासणं गदो । एवं सव्वजहण्णंतोमहत्तमेत्तकालुवलंभादो उक्कस्सेण अंतोमुत्तं सवक्कस्सउवसमसम्माइटिकालो घेत्तव्यो । किरियाकम्मरस जहण्णकालो एगसमओ त्ति किण्ण परूविदो ? ण, उवसमसेडोदो ओदिण्णस्स उवतमसम्माइटिस्स मरण संते वि उवसमसम्मत्तेण अंतोमुत्तमच्छिदूण चेव वेदगसम्मत्तस्स गमणवलंभादो। तवोकम्मं केवचिरं कालादो होदि ? जाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमहत्तं । कुदो ? मणुस्सेसु उवसमसम्मत्तं संजमं च जुगवं पडिवज्जिय सवलहुमंतोमहत्तमच्छिय छआवलियावसेसे आसाणं गदेसु तदुवलभादो । उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । कुदो ? अण्णोण्णाणुसंधिदउवसमसम्मत्तद्धासु संखेज्जासु गहिदासु उक्कस्सकालुवलंभादो । एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुत्तं । इरियाप्राप्त हुआ । यहां कुछ कम पूर्वकोटिप्रमाण काल तक तपःकर्म करके देव हुआ। इस प्रकार गर्भसे लेकर आठ वर्ष कम पूर्वकोटिप्रमाण तपःकर्मका उत्कृष्ट काल उपलब्ध होता है । उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके प्रयोगकर्म, समवधानकर्म और क्रियाकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहुर्त है । उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहुर्त है, क्योंकि, एक चारों गतिका जीव तीनों करणोंको करके उपशमसम्यग्दृष्टि हुआ। पुनः सबसे जघन्य उपशमसम्यक्त्वके कालके भीतर छह आवलि काल शेष रहनेपर सासादनसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। इस प्रकार सबसे जघन्य अन्तर्मुहुर्त मात्र काल उपलब्ध होता है । उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त है। यहां उपशमसम्यग्दृष्टिका सबसे उत्कृष्ट काल लेना चाहिये। शंका- क्रियाकमका जघन्य काल एक समय है, एसा क्यों नहीं कहा ? समाधान- नहीं, क्योंकि, उपशमश्रेणिसे उतरे हुए उपशमसम्यग्दृष्टिका यद्यपि मरण होता है तो भी यह जीव उपशमसम्यक्त्वके साथ अन्तर्मुहर्त काल तक रहकर ही वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होता है । यही कारण है कि उपशमसम्यग्दृष्टिके क्रियाकर्मका जघन्य काल एक समय नहीं कहा। तपःकर्मका कितना काल है? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल अन्त महर्त है, क्योंकि, जो मनुष्य उपशमसम्यक्त्व' और संयमको युगपत् प्राप्त होकर और अतिलघु अन्तर्मुहुर्त काल तक वहां रह कर छह आवलि कालके शेष रहनेपर सासादन गुणस्थानको प्राप्त होते है उनके यह काल पाया जाता है। उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि, परस्पर जुडे हुए उपशमसम्यक्त्वके संख्यात कालोंके ग्रहण करने पर उत्कृष्ट काल उपलब्ध होता है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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