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________________ छक्खंडागमे वग्गणा-खंड असंखेज्जविभागो। अदीदेण अटु णव चोद्दसभागा देसूणा । आधाकम्मस्स ओधभंगो' तवोकम्मस्स खेत्तभंगो। किरियाकम्मरस अदीदेण अट्ट चोदृसभंगा देसूणा। पम्मलेस्साए पओअकम्म-समोदाणकम्म किरियाकम्माणं पट्टमाणेण तेउभंगो । अदीदेण अट्ठ चोद्दसभागा देसूणा । तवोकम्मस्स खेत्तभंगो। आधाकम्मस्स ओघो। सुक्कलेस्साए पओअकम्म समोदाणकम्माणमदीद-वट्टमाणेण लोयस्स असंखेज्जदिभागो छ चोद्दसभागा देसूणा असंखज्जा वा भागा सव्वलोगो वा । आधाकम्मस्स ओघभंगो। इरियावह-तवोकम्माणं खेत्तभंगो। किरियाकम्मस्स छ चोद्दसभागा देसूणा। भवियाणुवादेण भवसिद्धियाणमोघभंगो। अभवसिद्धिय० सव्वपदाणं खेत्तभंगो । सम्मताणुवादेण सम्माइट्टि-खइयसम्माइट्ठीसु पोअकम्म समोदाणकम्माणं वट्टमाणेण लोगस्स असंखेज्जविभागो। अदीदेण अट्ट चोद्दसभागा देसूणा असंखेज्जा वा भागा सव्वलोगो वा। आधाकम्मस्स अदीदण-वट्टमाणेण सव्वलोगो कुदो ? सरीरादो ओसरिदूण ओदइयभावमछंडिय एगसमएण सव्वलोगमावूरिय द्विवाणं णोकम्मखंधाणमाधाकम्मभावनभुवगमादो। इरियावथ तवोकम्माणं खेत्तभंगोकिरिया० अदीदेण अट चोद्दसमागा देसूणा। वेदगसम्माइट्ठी० सव्वपदाणं वट्टमाणेण लोयस्स असंखेज्जविभागो।अदौदेण अट्ठ चोद्दसभागा देसूणा। आधाकम्मस्स ओघभंगो तवोकम्मस्स खेत्तभंगो। उवसमसम्माइट्ठी ओघके समान है । तपःकर्मका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । क्रियाकर्मका अतीत स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह भाग प्रमाण है। लेश्या में प्रयोगकर्म, समवधानकर्म और क्रियाकर्मका वर्तमान स्पर्शन पीत लेश्याके समान है। अतीत स्पर्शन कुछ कम आठ बट चौदह भागप्रमाण है। त कर्मका स्पर्शन क्षेत्रके समान हैं । अधःकर्मका स्पर्शन ओघके समान है। शुक्ल लेश्यामें प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका अतीत और वर्तमानकालीन स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण, लोकके असंख्यात बहुभागप्रमाण, और सब लोकप्रमाण है। अध:कर्मका स्पर्शन ओघके समान है। ईर्यापथ और तपःकर्मका स्पर्शन क्षत्रके समान है । तथा क्रियाकर्मका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण है । भव्यमार्गणाके अनुवादसे भव्योंके सब पदोंका स्पर्शन ओघके समान है। अभव्योंके सब पदोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । सम्यक्त्वमार्गणाके अनुवादसे सम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अतीत स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण, लोकके असंख्यात बहुभागप्रमाण और सब लोकप्रमाण है। अधःकर्मका अतीत और वर्तमान स्पर्शन सब लोकप्रमाण है, क्योंकि, शरीरसे पृथक होकर और औदयिक भावको न छोडकर एक समय द्वारा सब लोकको व्याप्त कर स्थित हुए नोकमस्कंधोंके अधःकर्मभाव स्वीकार किया गया है। ईपिथकर्म और तपःकर्मका स्पर्शन क्षेत्रके समान हैं । तथा क्रियाकर्मका अतीत स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह भाग प्रमाण है। वेदकसम्यग्दृष्टियोंके सब पदोंका वर्तमान स्पर्शन ओघके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। अतीत स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह भाग प्रमाण है। अधःकर्मका स्पर्शन ओघके समान है। तथा तपःकर्मका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। उपशमसम्यग्दृष्टियोंके सव पदोंका वर्तमान स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अतीत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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