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९८ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ४, ३२. पदेसट्टदा अणंता । एवं संजद-सामाइयछेदोवढावण-परिहारविसुद्धि-सुहुमसांपराइयसंजदासंजदेसु वत्तव्वं । णवरि अप्पप्पणो पदाणं पमाणं जाणिदूण वत्तन्वं । अवगदवेदेसु पओअ-समोदाग-इरियावह-तवोकम्माणं दवढदा संखेज्जा । पओअ-तवोकम्माणं पदेसट्टदा संखेज्जा लोगा । समोदाणइरियावहकम्माणं पदेसट्टना अणंता। आधाकम्मस्स दवट-पदेसट्रदा अणंता । एवमकसाइकेवलणाणि-जहाक्खादविहारसुद्धिसंजद-केवलदंसणीणं पि वतव्वं । णवंसयवेदाणमचक्ख० भंगो । णवरि इरियावहकम्म णस्थि । एवं कोधादिचत्तारिकसायाणं पि वत्तव्वं । मणपज्जवणाणोणं संजदभगो । एवं दव्वपमाणं समत्तं ।
खेत्ताणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य । ओघेण पओअकम्मसमोदाणकम्म-आधाकम्मदम्बट-पदेसटुदाओ केवडि खेते ? सव्वलोगे । इरियावहतवोकम्माणं दव्वट्ठ-पदेसट्टदाओ केवडि खेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे असंखेज्जेसु वा भागेसु सव्वलोगे वा । किरियाकम्मदव्वटु-पदेसट्टदा केवडि खेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे । एवं कायजोगि-भवसिद्धियाणं पि वत्तव्वं । एवमोरालियकायजोगि-ओरालियमिस्सकायजोगि-णवंसयवेद-चत्तारिकसायं---अचक्खुदंसणिआहारीणं पि वत्तव्वं । णवरि केवलिभंगो णत्थि। है । इसी प्रकार संयत, सामायिकसंयत. छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, सूक्ष्मसांपयिकसंयत और संयतासंयत जीवोंका कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि अपने अपने पदोंका प्रमाण जानकर कहना चाहिये ।
__अपगतवेदियोंमें प्रयोगकर्म, समवदानकर्म, ईर्यापथकर्म और तपःकर्मकी द्रव्यार्थता संख्यात है । प्रयोगकर्म और तपःकर्मको प्रदेशार्थता संख्यात लोक प्रमाण है। समवदानकर्म और ईर्यापथकर्मकी प्रदेशार्थता अनन्त है । तथा अधःकर्मकी द्रव्यार्थता और प्रदेशार्थता अनन्त है । इसी प्रकार अकषायी, केवलज्ञानी यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत और केवलदर्शनियोंका भी कथन करना चाहिए । नपुंसकवेदियोंका कथन अचक्षुदर्शनवालोंके समान है। इतनी विशेषता है कि यहां ईर्यापथकर्म नहीं होता । इसी प्रकार क्रोधादि चार कषायवालोंका कथन करना चाहिये ।मनःपयर्यज्ञानियोंका कथन संयतोंके समान है। इस प्रकर द्रव्यप्रमाणानुगमका कथन समाप्त हुआ।
क्षेत्रानगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश ।ओधसे प्रयोगकर्म, समवदानकर्म और अधःकर्मकी द्रव्यार्थता और प्रदेशार्थताका कितना क्षेत्र है? सब लोक क्षेत्र है। ईर्यापथकर्म और तपःकर्मकी द्रव्यार्थता और प्रदेशार्थताका कितना क्षेत्र है? लोकका असंख्यातवां भाग, असंख्यात बहुभाग और सब लोक क्षेत्र है। क्रियाकर्मकी द्रव्यार्थता और प्रदेशार्थताका कितना क्षेत्र है? लोकका असंख्यातवां भाग क्षेत्र है । इसी प्रकार काययोगी और भव्योंके भी कथन करना चाहिये। इसी प्रकार औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगो, नपुंसकवेदवाले, चारों कषायवाले, अचक्षुदर्शनवाले और आहारकोंके भी कथन करना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इन मार्गणाओंमें केवलिजिनोंका भंग नहीं पाया जाता । कार्मण
*ताप्रती एवं सामाइय ' इति पाठः। अप्रतौ ' तवकम्माणं पदेसटुदा ' इति पाठः ।
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