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________________ ३९० तत्त्वार्थवार्तिक [ २३३ वेलन्धर नागाधिपतिके नगर हैं। वेलन्धर नागाधिपतियोंकी आयु एक पल्य, शरीरकी ऊंचाई दश धनुष है । प्रत्येकके चार चार अग्रमहिषी हैं। ४२ हजार नाग लवणसमुद्र के आभ्यन्तर तटको, ७२ हजार बाह्य तटको तथा २८ हजार बढ़े हुए जलको धारण करते हैं। ८ रत्नवेदिकासे तिरछे १२ हजार योजन जाकर १२ हजार योजन लंबा चौड़ा गौतम नामके समुद्राधिपतिका गौतम द्वीप है । रत्नवेदिकासे प्रति ९५ हाथ आगे एक हाथ गहराई है। इस तरह ९५ योजनपर एक योजन, ९५ हजार योजनपर एक हजार योजन गहराई है। लवण समुद्रके दोनों ओर तट हैं। लवणसमुद्रमें ही पाताल हैं अन्य समुद्रोंमें नहीं। सभी समुद्र एक हजार योजन गहरे है । लवणसमुद्र का जल खारा है । वारुणीवरका मदिराके समान, क्षीरोदका दूधके समान, घृतोदका घीके समान जल है। कालोद पुष्कर और स्वयम्भू रमणका जल पानी जैसा ही है। बाकीका इक्षुरसके समान जल है । लवण समुद्र कालोदधि और स्वयम्भरमण समुद्र में ही मछली कछवा आदि जलचर हैं, अन्यत्र नहीं । लवण समुद्रमें नदी गिरनेके स्थानपर ९ योजन अवगाहनावाले मत्स्य है, मध्यमें १८ योजनके हैं। कालोदधिमें नदीमुखमें १८ योजन तथा मध्यमें ३६ योजनके मत्स्य है। स्वयम्भूरमण में नदीमुखमें ५०० योजनके तथा मध्यमें एक हजार योजनके मत्स्य है। धातकीखंडका वर्णन द्विर्धातकीखण्डे ॥३३॥ धातकीखंडमें भरतादि क्षेत्र और पर्वत दो दो है। ११ जैसे 'द्विस्तावानयं प्रासादः' यहाँ 'मीयते' क्रियाका अध्याहार करके क्रिया की अभ्यावृत्तिमें सुज् प्रत्यय होता है उसी तरह 'द्विर्धातकीखण्डे' में भी 'संख्यायन्ते' क्रियाका अध्याहार करके सुज् प्रत्यय कर लेना चाहिए । धातकीखंडमें भरतादि क्षेत्र दो दो हैं तथा उनका विस्तार भी दूना दूना है । २-४ धातकीखंडके भरतका आभ्यन्तर विष्कम्भ-६६१४ योजन, योजनके १३ भाग प्रमाण है । मध्यविष्कम्भ-१२५८१ योजन एक योजनके १५ भाग प्रमाण है । बाह्य विष्कम्भ-१८५४७ १५ योजन प्रमाण है। ५ धातकीखंडमें भरतसे चौगुना हैमवत, हैमवतसे चौगुना हरिक्षेत्र और हरिक्षेत्रसे चौगुना विदेह क्षेत्र है । दक्षिणकी तरह ही उत्तरके क्षेत्र है । धातकीखंडका विस्तार ४ लाख योजन है। इसकी परिधि ४११०९६१ योजन है । क्षेत्र पर्वत नदी वृत्तवेदाढय और सरोवरोंके वे ही नाम है । विस्तार आदि दूना दूना हो गया है। ६६ भरत और ऐरावत क्षेत्रोंमें कालोदधि और लवणसमुद्रको स्पर्श करनेवाले १०० योजन गहरे, ४०० योजन ऊंचे, पर एक हजार योजन विस्तृत इष्वाकार पर्वत हैं। धातकीखंडमें पूर्व और पश्चिममें दो मेरु पर्वत हैं। ये एक हजार योजन गहरे ९५०० योजन मूलमें विस्तृत, पृथ्वीतलपर ९४०० योजन विस्तृत और ८४००० हजार योजन ऊंचे हैं। भूमितलसे ५०० योजन ऊपर नन्दनवन है। यह ५०० योजन विस्तृत है। ५५५०० योजन ऊपर सौमनस वन है। यह भी ५०० योजन विस्तृत है। इससे २८ हजार योजन ऊपर पांडुकवन है । जम्बूद्वीपमें जहाँ जम्बू वृक्ष है धातकीखंडमें वहीं धातकीवृक्ष है। जैसे चक्रके आरे होते हैं उसी प्रकारकै पर्वत हैं और आरेके बीचके भागके समान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001811
Book TitleTattvarthvarttikam Part 1
Original Sutra AuthorBhattalankardev
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages454
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size11 MB
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