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________________ ३८४ तत्त्वार्थवार्तिक [३३१२-१६ हिमवान्के समान है। इस पर सिद्धायतन रुक्मि रम्यक नारी बुद्धि रूप्यकूला हैरण्यवत और मणिकांचन ये आठ कूट हैं। इनपर जिन-मन्दिर और प्रासाद हैं। प्रासादोंमें अपने कूटके नामवाले देव और देवियाँ रहती हैं। ११-१२ जिसके शिखर हों यह शिखरी । यह रूढ संज्ञा है जैसे कि मोरकी शिखंडी संज्ञा। यह हैरण्यवत और ऐरावतकी सीमा पर पुलके समान स्थित है। इसका विस्तार आदि हिमवान्के समान है । इसपर सिद्धायतन शिखरी हैरण्यवत रसदेवी रक्तावती श्लक्ष्णकूला लक्ष्मी गन्धदेवी ऐरावत और मणिकांचन ये ११ कूट हैं। इनपर जिनायतन और प्रासाद हैं। प्रासादोंमें अपने कूटके नामवाले देव और देवियाँ रहती हैं। पर्वतोंका रंग हेमार्जुनतपनीयवैडूर्यरजतहेममयाः ॥१२॥ हिमवान् हेममय चीनपट्टवर्ण का है । महाहिमवान् अर्जुनमय शुक्लवर्ण है । निषध तपनीयमय मध्याह्न के सूर्य के समान वर्णवाला है। नील वैडूर्यमय मोरके कंठके समान वर्णका है । रुक्मी रजतमय शुक्लवर्णवाला है। शिखरी हेममय चीनपट्टवर्णका है। 'मय' विकारार्थक है । हरएक पर्वतके दोनों ओर वनखंड और वेदिकाएँ हैं। मणिविचित्रपार्श्व उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः ॥१३॥ इन पर्वतोंके पार्श्वभाग रंग विरंगी मणियोंसे चित्रविचित्र हैं और ये ऊपर नीचे और मध्यमें तुल्य विस्तारवाले हैं। १ उपरि आदि वचन अनिष्ट संस्थानकी निवृत्तिके लिए है । च शब्दसे मध्यका ग्रहण कर लेना चाहिये । सरोवरोंका वर्णनपद्ममहापद्मतिगिञ्छकेसरिमहापुण्डरीकपुण्डरीका ह्रदास्तेषामुपरि॥१४॥ इन सरोवरोंके ऊपर पद्म महापद्म तिगिञ्छ केसरी महापुण्डरीक और पुण्डरीक नामके छह सरोवर हैं। १ पद्म आदि कमलोंके नाम हैं। इनके साहचर्यसे सरोवरोंकी भी पद्म आदि संज्ञाएँ हैं। प्रथमो योजनसहस्रायामस्तदर्धविष्कम्भो हृदः ॥१५॥ प्रथम सरोवर पूर्व-पश्चिम एक हजार योजन लम्बा और उत्तर दक्षिण पाँच सौ योजन चौड़ा है । इसका वज़मय तल और मणिजटित तट है। यह आधी योजन ऊँची और पांच सौ धनुष विस्तृत पद्मवरवेदिकासे वेष्टित है । चारों ओर यह मनोहर वनोंसे शोभायमान है। विमल स्फटिककी तरह स्वच्छ जलवाला विविध जलपुष्पोंसे परितः विराजित शरत्कालमें चन्द्रतारा आदिके प्रतिबिम्बोंसे चमचमायमान यह सरोवर ऐसा मालूम होता है मानो आकाश ही पृथ्वीपर उलट गया हो । दशयोजनावगाहः ॥१६॥ पहिले सरोवरकी गहराई दस योजन है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001811
Book TitleTattvarthvarttikam Part 1
Original Sutra AuthorBhattalankardev
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages454
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size11 MB
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