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________________ ३७] हिन्दी-सार ३७९ संख्येय वर्षकी आयुवाले तिर्यञ्च होते हैं। मनुष्योंमें गर्भज पर्याप्तक संख्येय वर्षकी आयुवाले ही मनुष्य होते हैं। सम्यङमिथ्यादृष्टि नारकोंका उसी गुणस्थानमें मरण नहीं होता। सम्यग्दृष्टि नारक सम्यक्त्वके साथ निकलकर केवल मनुष्यगतिमें ही जाते हैं। मनुष्योंमें भी गर्भज पर्याप्तक संख्येय वर्षकी आयुवाले मनुष्योंमें ही उत्पन्न होते हैं। सातवें नरकसे नारक मिथ्यात्वके साथ निकलकर एक तिर्यञ्च गतिमें ही जाते हैं। तिर्यञ्चोंमें भी पंचेन्द्रिय गर्भज संख्येय वर्षकी आयुवाले ही होते हैं। वहाँ उत्पन्न होकर भी मति, श्रुत, अवधिज्ञान, सम्यक्त्व, सम्यमिथ्यात्व और संयमासंयमको उत्पन्न नहीं कर सकते। छठवें नरकसे निकलकर तिर्यञ्च और मनुष्योंमें उत्पन्न हुए कोई जीव मति श्रुत अवधिज्ञान सम्यक्त्व सम्यङमिथ्यात्व और देशसंयम इन छहोंको प्राप्त कर सकते हैं। पांचवी से निकलकर तिर्यञ्चोंमें उत्पन्न हुए कोई जीव पूर्वोक्त छह स्थानोंको प्राप्त कर सकते हैं। मनुष्योंमें उत्पन्न हुए जीव उक्त छहके साथ ही साथ पूर्ण संयम और मनःपर्यय ज्ञानको भी प्राप्त कर सकते हैं। चौथीसे निकलकर तिर्यञ्चोंमें उत्पन्न हुए कोई जीव मति आदि छहको ही प्राप्त कर सकते हैं, अधिकको नहीं । मनुष्योंमें उत्पन्न हुए केवल ज्ञान भी प्राप्त कर सकते हैं। मोक्ष जा सकते हैं पर बलदेव वासुदेव चक्रवर्ती और तीर्थ कर नहीं हो सकते। तीसरी पृथिवी तकके तिर्यञ्चोंमें उत्पन्न हुए जीव पूर्वोक्त छह स्थानोंको प्राप्त कर सकते हैं, मनुष्योंमें उत्पन्न जीव तीर्थ कर भी हो सकते हैं, मोक्ष भी जा सकते हैं, पर बलदेव वासुदेव और चक्रवर्ती नहीं होते। तिर्यग् लोकका वर्णन जम्बूद्वीपलवणोदादयः शुभनामानो द्वीपसमुद्राः ॥७॥ चूंकि स्वयंभूरमण पर्यन्त असंख्यात द्वीप समुद्र तिर्यक्-समभूमि पर तिरछे व्यवस्थित हैं अतः इसको तिर्यक् लोक कहते हैं। जम्बूद्वीप लवणसमुद्र आदि शुभनामवाले द्वीप और समुद्र है। १ अतिविशाल महान् जम्बूवृक्षका आधार होनेसे यह द्वीप जम्बूद्वीप कहलाता है । उत्तरकुरुक्षेत्रमें ५०० योजन लम्बी-चौड़ी तिगुनी परिधिवाली, बीच में बारह योजन मोटी और अन्तमें दो कोश मोटी भूमि है । उसके मध्यभागमें ८ योजन लंबा ४ योजन चौड़ा इतना ही ऊँचा एक पीठ है । यह पीठ १२ पद्मवरवेदिकाओंसे परिवेष्टित है। उन वेदिकाओंमें प्रत्येकमें चार चार शुभ्र तोरण हैं । इन पर सुवर्णस्तूप बने हैं। उसके ऊपर एक योजन लम्बा चौड़ा दो कोस ऊँचा मणिमय उपपीठ है। इस पर दो योजन ऊंची पीठवाला ६ योजन ऊंचा मध्यमें ६ योजन विस्तारवाला और आठ योजन लम्बा सुदर्शन नामका जम्बूवृक्ष हैं । इसके चारों ओर इससे आधे लम्बे चौड़े और ऊँचे १०८ परिवारभूत जम्बूवृक्ष और है। ६२ खारे जलवाला होनेसे इस समुद्रका नाम 'लवणोद' पड़ा है। ____ इस तिर्यक्लोकमें जम्बूद्वीप, लवणोद, धातुकीखंड, कालोद, पुष्करवर, पुष्करोद, वारुणीवर, वारुणोद, क्षीरवर, क्षीरोद, घृतवर, घृतोद, इक्षुवर, इर्द, नन्दीश्वरवर, नन्दीश्वरवरोद इत्यादि शुभ नामवाले असंख्यात द्वीप समुद्र हैं । अन्तमें स्वयम्भूरमणद्वीप और स्वयम्भूरमणोद समुद्र है। अढ़ाई सागर कालके समयोंकी संख्याके बराबर द्वीपसमुद्रोंको संख्या है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001811
Book TitleTattvarthvarttikam Part 1
Original Sutra AuthorBhattalankardev
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages454
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size11 MB
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