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तत्त्वार्थवार्तिक [हिन्दी सार]
प्रथम अध्याय सर्वविज्ञानमय, बाय-आभ्यन्तर लक्ष्मीके स्वामी और परमवीतराग श्रीमहावीर को प्रणाम करके तत्त्वार्थवार्तिक ग्रन्थको कहता हूँ।
१-२ उपयोगस्वरूप तथा श्रेयोमार्गकी प्राप्तिके पात्रभूत आत्मद्रव्यको ही मोक्षमार्गके जाननेकी इच्छा होती है। जैसे आरोग्यलाभ करनेवाले चिकित्सा के योग्य रोगीके रहने पर ही चिकित्सामार्गकी खोज की जाती है, उसी तरह आत्मद्रव्यकी प्रसिद्धि होनेपर मोक्षमार्गके अन्वेषणका औचित्य सिद्ध होता है।
३ संसारी आत्माके धर्म अर्थ काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थोंमें मोक्ष ही अन्तिम और प्रधानभूत पुरुषार्थ है अतः उसकी प्राप्तिके लिए मोक्षमार्गका उपदेश करना ही चाहिए।
४-८ प्रश्न-जब मोक्ष अन्तिम, अनुपम, श्रेष्ठ और प्रधान पुरुषार्थ है तब उसीका उपदेश करना चाहिए न कि उसके मार्गका ? उत्तर-मोक्षार्थी भव्यने मार्ग ही पूछा है अतः प्रश्नानुरूप मार्गका ही उपदेश किया गया है । मोक्षके सम्बन्धमें प्रायः सभी वादियोंका एक मत है, सभी दुःखनिवृत्तिको मोक्ष मानते हैं, पर उसके मार्गमें विवाद है। जैसे विभिन्न दिशाओंसे । पटना जानेवाले यात्रियोंको पटना नगरमें विवाद नहीं होता किन्तु अपनी अपनी दिशा के अनुकूल मार्गमें विवाद होता है उसी तरह सर्वोच्च लक्ष्य भूत मोक्षमें वादियोंको विवाद नहीं है किन्तु उसके मार्गमें विवाद है। कोई वादी ज्ञानमात्रसे ही मोक्ष मानते हैं तो कोई ज्ञान और विषयविरक्ति रूप वैराग्य से तथा कोई क्रियासे ही मोक्ष मानते हैं। क्रियावादियोंका कथन है कि नित्यकर्म करनेसे ही निर्वाण प्राप्त हो जाता है। फिर, प्रश्नकर्ताको यह बन्धन भी तो नहीं लगाया जा सकता कि-'आप मार्ग न पूछे, मोक्षको पूछे', लोगोंकी रुचि विभिन्न प्रकारकी होती है । यद्यपि मोक्षके स्वरूप में भी वादियोंकी अनेक कल्पनाएँ हैं, यथा-बौद्ध रूप वेदना संज्ञा संस्कार और विज्ञान इन पांच स्कन्धोंके निरोधको मोक्ष कहते हैं, सांख्य प्रकृति और पुरुष में भेद विज्ञान होनेपर शुद्ध चैतन्य मात्र स्वरूपमें प्रतिष्ठित होनेको मोक्ष मानते हैं, नैयायिक बुद्धि सुख-दुःख इच्छा द्वेष प्रयत्न धर्म अधर्म और संस्कार इन आत्माके विशेष गुणोंके उच्छेद को मोक्ष कहते हैं, फिर भी सभी वादी 'कर्मबन्धनका विनाश कर स्वरूपप्राप्ति' इस मोक्षसामान्यमें एकमत हैं। सभी वादियोंको यह स्वीकार है कि मोक्ष अवस्थामें कर्मबन्धनका समूल उच्छेद हो जाता है।
९-१३ प्रश्न-मोक्ष जब प्रत्यक्षसे दिखाई नहीं देता तब उसके मार्गका ढूंढना व्यर्थ है ? उत्तर-यद्यपि मोक्ष प्रत्यक्षसिद्ध नहीं है फिर भी उसका अनुमान किया जा सकता है। जैसे घटीयन्त्र (रेहट) का घूमना उसके धुरेके घूमनेसे होता है और धुरेका घूमना उसमें जुते हुए बैलके घूमनेपर । यदि बैलका घूमना बन्द हो जाय तो धुरेका घूमना रुक जाता है और धुरेके रुक जानेपर घटीयन्त्रका घूमना बन्द हो जाता है उसी तरह कर्मोदयरूपी बैलके चलनेपर ही चार गति रूपी धुरेका चक्र चलता है और चतुर्गतिरूपी
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