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________________ [१०] मूल पृष्ठ हिन्दी पृष्ठ मूल पृष्ठ हिन्दी पृष्ठ कर्मके उपशम होनेका कारण काल उपयोगके साकार और अनाकार ये . लब्धि प्रादि १०४ ३३८ दो भेद १२३ ३५२ औपशमिक चारित्रका स्वरूप और सूत्रस्थ पदोंका पौर्वापर्य विचार १२४ ३५२ सम्यक्त्व तथा चारित्रका पौर्वा जीवके संसारी और मुक्त दो भेद १२३ ३५२ पर्य विचार १०५ ३३६ | सूत्र में आये हुए पदोंका अर्थ १२४ ३५३ हायिक भावके भेद तथा उनके लक्षण १०५ ३३६ 'च' शब्दकी सार्थकता १२५ ३५३ अभयदान आदि कार्य सिद्धोंमें क्यों संसारी जीवके समनस्क और अमनस्क नहीं होते ? १०६ ३४० १२५ ३५३ मिश्र भावके भेद १०६ ३४० सूत्रगत पदोंका तात्पर्य १२५ ३५३ 'समनस्कामनस्काः पृथक सूत्र बनाने सूत्रगत पदोंका परस्पर सम्बन्ध कथन १०६ ३४० । का तात्पर्य १२५ ३५३ क्षयोपशमका स्वरूप १०६ ३४१ संसारीके अस और स्थावर भेद १२६ ३५४ स्पर्धकका लक्षण १०७ ३:४१ स शब्दका तात्पर्य १२६ ३५४ क्षायोपशमिक भावके भेदोंका विशेष स्थावर शब्दका अर्थ १२६ ३५४ विचार १०७ ३४१ सूत्रस्थ पदोंका पौर्वापर्यविचार १२७ ३५४ संज्ञित्व आदि भावोंका अन्तर्भाव १०८ ३४२ स्थावरके पाँच भेद १२७ ३५४ श्रौदयिक भावके भेद १०७ ३४२ पृथिवी आदि प्रत्येकके चार भेद १२७ ३५४ औदयिक भावके गति आदि भेदोंका सूत्रस्थ पदोंका पौर्वापर्य विचार १२७ ३५४ स्वरूप १०८ ३४२ बस कौन हैं ? १२८ ३५५ पारिणामिक भावके भेद १० १५३ सूत्रस्थ शब्दोंका तात्पर्य विवेचन १२८ ३५५ जीवत्व श्रादिके पारिणामिकत्वका सम द्वीन्द्रिय आदिमें किसके कितने प्राण हैं १२६ ३५५ र्थन व उनका स्वरूप । ११० ३४३ । इन्द्रियों की संख्या १२९ ३५५ 'च' शब्दको सार्थकता १११ ३४४ इन्द्रिय शब्दका अर्थ १२६ ३५५ अस्तित्व श्रादि भाव अन्य द्रव्योंमें भी मन इन्द्रिय न होनेका कारण १२६ ३५५ पाये जाते हैं, इसलिए उनका यहाँ इन्द्रिय शब्द द्वारा कर्मेन्द्रियोंका सूत्र में संग्रह नहीं किया इसका ग्रहण नहीं किया १२६ ३५६ विचार प्रत्येक इन्द्रिय दो दो प्रकारकी है १३० ३५६ सान्निपातिक भावका मिश्र भावमें द्रव्येन्द्रियके दो भेद १३० ३५६ अन्तर्भाव निवृत्तिका लक्षण व उसके भेद औपशमिक आदि भाव अात्माके ही उपकरणका लक्षण व उसके भेद १३० ३५६ परिणाम है ११६ ३४७ भावेन्द्रियके दो भेद १३० ३५६ अमूर्त श्रात्मा भी कर्मसे बद्ध है ११७ ३४७ लन्धिका लक्षण १३० ३५१ जीवका बक्षण उपयोग ११८ ३४८ उपयोगका लक्षण १३० ३५६ हेतुके भेद ११८ ३४८ उपयोग इन्द्रिय क्यों है इसका विचार १३० ३५६ लक्षण विचार ११६ ३४८ । पाँच इन्द्रियोंके नाम १३१ ३५७ तादात्म्यस्वरूप उपयोग श्रात्माका इन्द्रियोंके नामोंकी व्युत्पत्ति १३१ ३५७ लक्षण कैसे हो सकता है इस पहले स्पर्शन अनन्तर रसना इत्यादि शंकाका परिहार ११६ ३४६ __ क्रमसे कथन करनेका कारण १३१ ३५७ श्रात्माके अभावमें दिखाई गई युक्तिका ये इन्द्रियाँ परस्पर और आत्मासे कथखण्डन १२१ ३५० ञ्चित् भिन्न हैं और कथञ्चित् उपयोगके भेद-प्रभेद अभिन्न है १३२ ३५७ ११४ ३४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001811
Book TitleTattvarthvarttikam Part 1
Original Sutra AuthorBhattalankardev
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages454
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size11 MB
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