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७४ तो मुझे अपने आप पर तथा मेरे काम पर विश्वास नहीं रहता।"
दान देने से अधिक आनंद, देने की भावना का है, अर्पण भाव में आनंद है। अर्पण भाव बिना अमरता की पगडंडी हाथ लगने वाली नहीं इसके लिए निष्कपट, नि:स्वार्थ दान आवश्यक है। बादल बरस कर हल्के होते हैं, वैसे ही दान देकर हमें हल्केपन का अनुभव करना है।
चित्त की उदारता बिना, कोरी आराधना निष्फल है। हमें अपने चित्त को इस प्रकार गढ़ना है कि दान की भावना हमेशा जागृत रहे। __यह सातवां सद्गुण है। अशठता में, अर्थात शठता को त्यागने वाला इन्सान निर्मल हृदयवाला होता है, उसका अंतःकरण पारदर्शी होता है, चित्त, वाणी, क्रिया में सुसंवाद होता है। ऐसा व्यक्ति विश्वसनीय, प्रशंसनीय होता है, उसकी बुद्धि उन्नत तथा तलवार की धार जैसी तीक्ष्ण होती है।
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