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पाप पराजय
पाप भीरू व्यक्ति का हृदय एक तरह से अभय होता है, किसी की परवाह नहीं करता। क्यों कि पाप को पराजित किया है उसने। अधिकतर लोग पाप से इसलिए डरते हैं, क्यों कि उन्हें भय है कि किसी को पता चल जाएगा तो क्या होगा? जब कि पापभीरू व्यक्ति पाप से डरता है, परंतु दूसरों से अभय रहता है, एक पाप कितने भय पैदा करता है, इसका एक उदाहरण देखते हैं। पापभीरू व्यक्ति मन, वचन, काया से नियमों को भंग नहीं करता। चोरी का माल लेना, बेचना, कर न भरना, प्रतिबंधित माल लेना या भेजना ऐसे काम न करके वह देश व कानून का भला करता है। आज तो पूरा समाज ही चोर बन गया है, केवल सरकार ही दोषी नहीं है। Every nation has a government it deserves. देश के प्रधान भी समाज में से ही चुने जाते है। इन्सान में यदि न्याय के प्रति कानून के प्रति आदरभाव नहीं हों, जीवन में सिद्धांतो का पालन नहीं हो तो राज्य चाहें जितने नियम कानून बनाऐं, वह भंग की करेगा। इन्सान को स्वयं को बदलने की, ईमानदार बनने की जरूरत है।
मुंबई के एक न्यायाधीश थे, एक दिन अत्यंत जरूरी काम की वजह से, गति मर्यादा का भंग करके, पुलिस चौकी को भी पार करके, तेज रफ्तार से गाड़ी चलाकर आगे निकल गये। परंतु काम पूरा होते ही वे पुलिस चौकी
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