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है, महात्मा साधु माफ कर देते हैं। बाकी तो ऐसे लोग विरले ही होते हैं जो संयोगो तथा वातावरण को पैरो तले रोंदकर आगेकूच कर जाते हैं।
___ संत ने देखा इस औरत को सुधरने की इच्छा तो है, इसके अंतर में सच्चा पश्चाताप जगा है। उत्तम तथा दैवी भावना का झरना बहने लगे तो इन्सान पुण्यशाली बन सकता है।
इस औरत का मुंह उदास था, अंतरमन से दुखी थी, संयोगो के दबाव में आकर अनाचार का सेवन किया था, संतने कहा “तुम निश्चित रहो।"
पत्थर, ढेले, लकडियां लेकर लोग आए, संत ने शांति से सबकी बात सुनी और बोले तुम को लगता है, “यह औरत भ्रष्ट है, तो मारना, परंतु जिसने कभी किसी औरत को देखकर कुदृष्टि न डाली हो, मन में विकार पैदा नहीं हुआ हो, केवल वही इन्सान मारेगा। तुम सबसे पहले अपने मन को पूछो, अपने ईष्ट देव से पूछो। यदि तुम पवित्र हों तो जरूर मारो।" संत के साथ सब ध्यान में खड़े रहे, आत्मा तो सामान ही है, जो होता है वह सच कहती है। मन का एकांत, यानि मन के साथ बात, आज हम यह करते हैं? नहीं शायद। हम तो अकेलेपन से घबराते है, अकेलापन हो तो रेडियो बजाते हैं। हमें तो मंदिर में भी कई विचार आते है, एकांत की शांति में। क्यों कि हमारा मन हमेशा कूदता रहता है। हमें मौन की भाषा सीखनी है तभी हम अपनी आत्मा की आवाज सुन सकेंगे। इसीलिए कई बार हम कहते हैं, “अपनी आत्मा से पूछो यदि हम चाहेंगे तो हमारी आत्मा हमें जरूर जवाब देगी।"
मारने आने वालों ने ध्यान की शांति में देख लिया कि, ऐसा पवित्र तो कोई नहीं है, जिसके मन में भी कभी विकार न जन्मा हों। धीरे धीरे सब शर्मा कर वहां से चले गये।।
संत ने औरत से कहा, “अब तुम जाओ अपने जीवन का नवसर्जन करो, जो इन्सान अंधेरे कुएँ से बाहर निकलता है, उसे ही नवप्रभात के सुंदर दर्शन होते हैं।' 'आत्मा सो परमात्मा' इसका अर्थ यही है कि हमारी आत्मा
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