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________________ उसमें अहम् एवं गर्व आता है तथा उसका पतन होता है। इसीलिए भगवान महावीर ने कहा कि संयोगो से मुक्त हे भिक्खुओ, तुम्हे सद्गुणों तथा धर्म की शुरूआत में विनय के बारे में प्रथम कहूंगा, फिर दूसरी बात कहूंगा । लोग तुम्हें वंदन करेंगे, तुम्हारी चरण धूलि सर पर चढ़ायेंगे, उस समय यदि जागृत नहीं रहे तो गर्व रूपी सर्प तुम्हें डस लेगा । इसीलिए भगवान ने प्रथम विनय सिखाया, विनय बिना तो भलभलों का पतन हो जाता है। ५१ साधु संतो के जीवन में भी यदि विनय गुण न हों तो गर्व कब उछल पडेगा, जानना मुश्किल है । भगवन् स्थूलिभद्र, जिनका नाम ही मंगलरूप है, जो शील के अवतार थे, उनको भी एक बार अहम् आ गया था । मुनि स्थूलभद्र अत्यंत ज्ञानी थे, एक बार उनकी बहने सेणा, वेणा, रेणा वगैराह उनके दर्शन हेतु आई, गुरु ने कहा “ स्थूलिभद्र उपर है।” स्थूलिभद्र को इस बात का पता चल गया, उन्होंने सोचा " अपनी ज्ञान शक्ति का प्रभाव बहनों को दिखाऊं ।" वे सिंह का रूप धारण कर के बैठ गये, बहनें तो सिंह को देखकर डर गई, नीचे जाकर गुरू को बात बताई | गुरु समझ गये मुनि में विद्या प्रदर्शन का गर्व जग गया है, विद्या का अहंकार आ गया है। कई बार हम सोचते है चमत्कार दिखायेंगे तो लोग अनुयायी बनेंगे, पर हम भूल रहे हैं कि दुनिया को कल कोई नया चमत्कार देखने को मिलेगा, वह पहले चमत्कार को भूल जाएगी । चमत्कार में सच्चा धर्म है ही नहीं, यह तो अल्पजीवी है, केंचुए की तरह । जो धर्म आत्मा की गहराईयों से नहीं निकलता, वह धर्म उसका चमत्कार खत्म होंने पर या व्यक्ति के चले जाने पर नष्ट हो जाता है। अवधान जैसे प्रयोग दिखाकर लोगों को सिर्फ चकित करने की ही भावना हों तो ऐसे प्रदर्शन भी पाप है। धर्म कोई चमत्कार नहीं, यह तो सत्य है। धन, कुटुम्ब, पत्नी सब कुछ छूट सकता है, पर कई बार इन्सान अहंकार नहीं छोड़ सकता। अहम्, गर्व कब प्रगट हो जाएगा कुछ कह नहीं सकते । बाहुबली ने अपना सर्वस्व त्याग कर दिया था, परंतु एक अहंकार रह गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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