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________________ ४३ अपने अंदर भगवान के गुण देखने का प्रयत्न करे तो वह भी भगवान बन सकता है, क्यों कि आत्मा तो दोनों की एक समान है । इन्सान को उसके अंदर छिपी हुई शक्तियों का अन्दाज नहीं है, अपनी शक्तियों को पहचान कर उनका उपयोग करना ही साधन है । शक्तियों का उपयोग करने से वे खिलती हैं, नहीं तो कुंठित हो जाती हैं। जब कोई नये काम की शुरूआत करता है, लोग निंदा करते हैं, पर समय बीतने पर कद्र करते हैं, सम्मान देते हैं । कवि न्हानालाल ने अपद्यागद्य शैली को साहित्य क्षेत्र में पेश किया, तब कई कवियों ने कड़ी आलोचना की, पर आज उनकी इस डोलनशैली पर लोग वाह-वाह करते हैं । हमें यह याद रखना चाहिए कि हम पूरी दुनिया को धोखा दे सकते हैं, पर अपनी आत्मा को नहीं । यदि समय के होते, अपनी शक्तियों का उपयोग नहीं किया तो वे कुंठित हो जाएंगी और हमारे साथ उनका भी मरण हो जाएगा। भगवान महावीर ने मनुष्य को जागृत होकर आगे कदम बढाने के लिए ललकारा है, उन्होंने इन्सान में भगवान, सर्वशक्तिमान के दर्शन किए हैं, न कि भिखारी के। संतो की बताई हुई राह पर यदि मनुष्य चलेगा तो उसे अपनी शक्तियों की पहचान होगी, हमें तो सिर्फ उनको प्रगट ही करना है। अपनी शक्तियों के दर्शन मात्र से ही हमारे जीवन में नई चेतना का संचार होता है । चाहें निष्फलता मिलें या लोग निन्दा करें यदि हम सत्य मार्ग पर हैं, तो हमें जरूर अग्रसर होना चाहिए, और सत्य का प्रतिपादन करना चाहिए, अपनी आत्मा की आवाज को सुनो। हथियारों का उपयोग न करने पर जंग लग जाता है, वैसे ही शक्तियों का उपयोग न करने से वे क्षीण हो जाती हैं । अत: हमें प्राप्त शक्तियों का सदुपयोग करते रहना चाहिए । जो लोग अपने सद्गुणो के कारण पूजे जाते हैं, उनकी कभी भी निन्दा या मजाक नहीं करनी चाहिए, उनकी मजाक करना यानि अपनी स्वयं की मजाक करना । इसी तरह औरतों तथा वृद्धो का भी मजाक नहीं बनाना चाहिए, बुढ़ापे का मजाक यानि कि अपनी जवानी की मजाक । युवकों को तो वृद्धो तथा औरतों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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