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सौम्यत्व के साथी
इस धर्मरत्न की विशेषता यह है कि एक के बाद दूसरे सद्गुण क्रमश: आ ही जाते हैं, केवल एक सद्गुण का पठन, चिंतन, श्रवण दूसरे सद्गुणों को आकर्षित कर ही लेता हैं। जीवनरूपी रेल गाडी में एक सद्गुण रूपी ईंजन जुड जाए, तो दुसरे सद्गुण रूपी डिब्बे स्वत: ही जुड जाते हैं।
इसके लिए अनुरूप वातावरण का सर्जन करना चाहिए, ताकि सद्गुणों का प्रवेश जीवन में होता रहे, और दुर्गुण निकलते जाएँ। सच ही कहा है कि पुस्तकों का पठन, मित्र और अच्छा वातावरण इन्सान के जीवन सर्जन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
अच्छा स्वाध्याय होना चाहिए, ताकि मन में अच्छे विचार आएं, मिट्टी के घडे में भी हम हल्की चीज या कचरा नहीं भरते। तो क्या? उस घडे से भी हमारा दिमाग गया गुजरा है कि ऐसे हल्के विचार, भरें? हमें खराब बातें सुननी ही नहीं चाहिए, क्योंकि फिर उन्हें दिमाग से निकालना कठिन होता है।
मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि, “मनुष्य में मनुष्यत्व का पनपना उसके कुल के संस्कारो का परिणाम है। मन अत्यंत ही संवेदनशील होता है। बुरी आदतें अथवा बातें जो मन को लुभाती हैं, जल्दी ही मन उनकी और आकर्षित हो जाता है कारण कि इन्द्रियो को वह सुखकर प्रतीत होता है। यदि जन्म
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