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________________ २८ के दूसरे किनारे तक पहुंचता है। जीवन के छोटे मोटे वाद-विवाद, आंदोलनों के दूसरे किनारे तक पहुंचते हैं और विश्व युद्ध के वातावरण का निर्माण करते है। ___ कुदरत के लिए सभी समान है, वहां गरीब अमीर का कोई भेद नहीं। विश्व में यदि शांति स्थापित करनी है तो हमें अपनी प्रकृति सौम्य बनानी पडेगी। जीवन की गहराईयों तक यह तत्त्व घुलेगा तभी हम समझ सकेंगे कि जीवन में उग्रता अग्नि है, सौम्यता चंदन है, हमें उग्रता त्याग कर सौम्यता ग्रहण करनी है। जिस व्यक्ति में गंभीरता नहीं, वह सौम्य नहीं बन सकता, सौम्य बनने के लिए किसी प्रकार के बाह्य दिखावे की जरूरत नहीं। सिर दुखता हों तो मरहम भी लगा सकते हैं, साथ साथ उसके मूलभूत कारण, कब्ज वगैराह दूर करने के लिए, आंतरिक दवाई भी ले सकते है, ज्ञानीयों ने हमें बाह्य के साथ-साथ आंतरिक दवाईयां भी बताई है। जो आदतें हमारे रक्त के साथ एकाकर हो गई हैं उनका निग्रह कैसे करेंगे? इसीलिए कहा है- “प्रकृति यान्ति भूतानि निग्रह : किम् करिष्यति।" आदतों की जड़ें इतनी गहरी हो जाती हैं, कि उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल होता है। हम बाहर से नियंत्रण करते हैं पर थोडे ही समय में, निमित्त पाकर फिर उछलती हैं, इसे ही आघात-प्रत्याघात कहते हैं। जो लोग क्रोध का त्याग करते हैं, उनकी प्रकृति ही ऐसी सौम्य बन जाती है, कि फिर हर कार्य शांतिपूर्वक होता है। वाणी में से सौम्यता के ही सुर निकलते हैं। पुराने समय में कई ग्रंथों की रचना, ऐसे सौम्य, स्वमानी संतो ने की है, जिनके पठन, श्रवण से शांति का अनुभव होता है। आज तो कई लेखकों के लेखन में तृष्णा की आग छिपी होती है जो जिंदगी में असंतोष पैदा करती है। पहले के ब्राह्मण भी संतोषी थे, आज ब्राह्मण “भामण' हो गये हैं इनकी संस्कृत वाणी में आज सुंदरता कहाँ रही है? संस्कृत तो ऐसी लयमय एवं दिव्य वाणी है कि सुनकर मन आनंद विभोर हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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