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________________ परिपूर्णता प्राप्त करना महान पुण्योदय है। पंचेन्द्रियों की पूर्णता के साथ विनय विवेक होना भी आवश्यक है। इसीलिए ज्ञानीयों ने कहा है की प्राप्त साधनसामग्री का जितना सदुपयोग करोगे, उतना ही विकास अच्छा होगा, दुरूपयोग से विनाश होगा, विवेक ही सफलता की चाबी है। सुंदर देखना, बोलना, विचार करना और सत्कार्य करना, यह जीवन का आशय होना चाहिए। जब तक हमें मृत्यु के दर्शन नहीं होते, तब तक हम अपने जीवन में न करने योग्य काम करके अपना जीवन व्यर्थ गंवा बैठते हैं। यह मृत्यु एक ऐसा दंड है, जो न झुकनेवाले को भी झुका देती है, यह ऐसी शिक्षक है जो बेहोश को होश में ला देती है। मृत्यु को समझने वाला यह समझता है की जीवन-मृत्यु ये जीवन के दो अखंड छोर है। जन्म से पहले भी जीवन था, और मृत्यु के बाद भी जीवन होगा। अज्ञान व्यक्ति अपने बुजुर्गो, गुरूजनों की अवहेलना करता है, अकड़कर घूमता है, पर ऐसे व्यक्ति का सर एक दिन मृत्यु झुका देती है, और अहंकार की मौत हो जाती है। यहां एक विचारणीय प्रश्न है, “दुनिया में बड़ा कौन? मानव या उसकी परछाई ? उसे कैसा जीवन जीना चाहिए? अपने अंदर बसे हुए चेतन को पहचान कर या परछाई के अनुकूल बनकर?" यह एक बहुत ही गहन अबूझ पहेली है। मानव और परछाई दोनो को इसका जवाब नहीं मिल पाया, तब दोनो . एक सूने मंदिर में गये, वहां मूर्ति नहीं थी प्रश्न की प्रतिध्वनि थी, हाथ जोडकर पूछा, “देव आप ही बताईये कौन बडा? मानव या परछाई?" ___ आवाज आई, “शांत हो जाईये, कोई आ रहा है, मानव और परछाई एक कोने में छिप गये।" तभी एक धनवान आया और बोला “मेरे पास पैसे थे, तब सभी मेरे स्वजन थे, आज पैसेरूपी परछाई नहीं है, तब सभी मुझसे दूर हो गये है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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