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उपकार चतुष्टक
व्यक्ति यदि दूसरे सभी गुणों से शोभायमान हो, परंतु उसमें यदि कृतज्ञता रूपी सद्गुण का अभाव है। व्यक्ति अपने जीवन में धर्म का दिखावा तो करता है, परंतु अपने ऊपर उपकार करने वालों को याद नहीं रखता। पुराने समय में दूसरों के उपकारों का बदला चुकाने का इन्सान इंतजार करता था, कि कब मौका मिले और वह प्रत्युपकार करे।
हम बुरा करने में हिचकिचाते हैं, क्यों कि हम पर हमारी संस्कृति, गुरु, धर्म, माता-पिता, समाज आदि के उपकार हैं, अतः बुरा कर्म करते हुए क्षोभ होता है। हम में यदि मानवता का जरा भी प्रकाश है और किसी कारणवश जीवन में कभी पशुता जगती भी है, तब उस प्रकाश के कारण, अंदर से एक आवाज आती है, “मैं ठीक नहीं कर रहा हूं।" और फिर हम बुरे कार्य करने से रूक जाते हैं। इस प्रकार चेतना प्रबुद्ध होने पर पाप खटकते हैं, भूल कर भी भूल हो जाए तो पश्चाताप जाग्रत होता हैं, यही कारण है कि हम कई बार बुरा करने से रूक जाते हैं।
माता पिता, पेट पर पट्टे बांधकर अर्थात भूखे रहकर, बच्चों को अच्छा खिलाते हैं। ठंडी, गर्मी सहन करके उनका रक्षण करते हैं। हमेशा बच्चों के सुख की ही कामना करते हैं, मानों उनके लिए ही जी रहे हों। कैसा अपूर्व उपकार है उनका?
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