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नहीं पूछता, फिर भी मैं अभिमानी?"
ऐसा क्यों भगवान? आपने केवल्य ज्ञान पाया, तो मुझे क्यों नहीं मिलता? भगवान की और अपनी तुलना करें तो अंदर का तत्त्व प्रगट हों, गुणों के प्रति आदर प्रगट हों। कभी किसीने इस दुनिया में हमारे लिए कुछ अच्छा किया हो तो उसके प्रति कृतज्ञता प्रगट हो, ऐसा प्रयत्न करना चाहिए।
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