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________________ १५३ करनी पड़ती है। आज पोथी पंडित बहुत मिलेंगे उनके पास, मात्र थोथे शब्दों का संचय होता है, श्रवण साधना की पूंजी नहीं। __ श्रवण द्वारा श्रुत आता है, आगम श्रुत हैं। ये लिखे नहीं गये थे, भगवान महावीर के पास से गौतम, सुधर्मा स्वामि, सुधर्मा स्वामि से जंबूस्वामिने श्रुतज्ञान श्रवण द्वारा धारण किया था। यह श्रुतज्ञान उपासना, संयम, त्याग और तप द्वारा आता है, जिसमें यह ज्ञान उत्पन्न हो जाए उसका जीवन परिवर्तन हो जाता है, ऐसा होने पर जीवन में त्याग का सूर्य उदय होता है और अज्ञानरूपी अमावस्या का अंधकार विलीन हो जाता है। ___ श्रवणसाधक गुरु के पास सुनने आते हैं, गुरु को शीश नमाते हैं, इससे अहंकार कम होता है। श्री हरिभद्रसुरिजी ने फरमाया कि साधु सेवा से तीन फायदे होते हैं। संतो के हृदय से निकले हुए उपदेश श्रवण का लाभ, धर्म आचरण करने वाले व्यक्ति के दर्शन तथा विनय बताने के लिए उत्तम स्थान की प्राप्ति। जो मुक्त होते हैं, वे ही मुक्ति में सहायक बन सकते हैं, वे ही राग में से बाहर निकालते हैं और मानवता रूपी स्वर्ण प्रगट करते हैं। आज अखबार वाले तथा पैसे के लिए कथा पढने वाले लोग भी धर्म की बातें करते हैं, परंतु यह तो जैसे हजामत करनेवाला जवाहरात की बात करे, ऐसी बात लगती है। अनाधिकार की बातें शोभा नहीं देती, इसके लिए अधिकार चाहिए, योग्यता और पात्रता चाहिए। सिर तो मंदिर, गुरु तथा बुजुर्गों के सामने झुकना चाहिए, विनयपूर्वक झुकना आएगा तो बाद में आने वाली पीढ़ी भी ऐसा करेगी। ___भक्ति और विनय पूर्वक श्रुत यानि श्रवण। सर्दियों में अग्नि के बारे में लिखा हुआ काव्य पढ़ो तो सर्दी दूर नहीं होगी, परंतु अग्नि के पास जाकर बैठने से उष्मा आएगी। मात्र पोथी पठन तो अग्नि के बारे में लिखे हुए काव्य की तरह है, परंतु जिनके पास चारित्र्य है, उनके पास जाओ तो प्यार, ज्ञान रूपी उष्मा प्राप्त होगी। मन पर एक अमिट छाप छोडेगी, इसीलिए पुस्तकों से अधिक संतो का संपर्क- श्रवण वांछनिय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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