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________________ १४२ आएंगे, बैल-गाडियों में भरकर मंगाने होगे।" वृद्धने प्रसन्न होकर कहा, "तुमने वृद्धि की है, तुम्हारा नाम रोहिणी है। कुटुम्ब का सारा संचालन तुम्हें करना होगा।" इस तरह सबके गुणों के अनुसार, व्यवस्था कर दी गई। शेठ ने देखा कि चौथी बहु ने दीर्घदृष्टि का उपयोग करके कैसा सुंदर परिणाम दिखाया है? काम तो सब करते हैं, परंतु विचार करके काम करने से परिणाम अच्छा आता है। डॉक्टर भी इतना विवेक तो रखता ही है कि, बडों और बच्चों के इंजेक्शन की सुई अलग अलग रखता है। शेठ की चार बहुएँ अज्जिका, भक्षिका, रक्षिका तथा रोहिणी, सबकी विशिष्टता जीवन में दिखाई देती थी, परंतु रोहिणी की प्रज्ञा की तीव्रता कुछ अलग ही थी, उसने अपने कार्य से कुल का गौरव भी बढाया। इसी तरह जीवन में थोडा भी मिले तो उसको विकसित करके, सबका हित हों, इस तरह उपयोग करना चाहिए। ऐसा करने से सबका भला ही होता है। अपने जीवन में पाँच व्रतों के विकास और वृद्धि के लिए दीर्घ दृष्टि रखना धर्मीजीवन में अत्यावश्यक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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