________________
१४१
राजगृही के धन्ना शेठ के चार बेटे हैं, जब वह वृद्ध हुआ तो उसे विचार आया “करोडों के सुख साधन छोडकर अंत में तो जाना है। पुरूष तो बाह्य प्रवृत्तियों में मग्न रहता है, परंतु स्त्री यानि घर, घर में स्त्री अच्छी तो कुटुम्ब अच्छा, इसीलिए कहा है कि, “गृहिणी गृहमुच्यते'' गृहिणी संस्कारी, पवित्र व्यवस्थित, सौम्य हों तो घर को स्वर्ग बना सकती है। शेठ ने सोचा पुत्रवधुएं अच्छी होंगी तो पुत्र भी व्यवस्थित, अच्छे बन जाएंगे।
शेठ ने परीक्षा लेने का विचार किया, चारों बहुओं को कहा, “अब हम वृद्ध हो गये हैं, इसलिए यात्रा करने जा रहे है, लो डांगर (चावल) के पाँच पाँच दाने, इन्हें संभाल कर रखना, यही जीवन की पूंजी है।'' पहली बहु को लगा, “साठे बुद्धि नाठी' लगती है, साठ साल की उम्र में बुद्धि भ्रष्ट हो गई है, यह सोचकर उन पाँच दानों को कचरे में फेंक दिया। दूसरी ने वृद्धों का प्रसाद समझकर मुँह में रखे, पाँच दाने। तीसरी ने सोचा ससुर है तो अनुभवी, संभल कर रखने को कहा है, तो इसके पीछे कोई राज होगा, इसलिए एक डिब्बी में दाने रखकर, तिजोरी में रख ली।
चौथी बड़ी बुद्धिमान थी, उसने अपने भाई को पाँच दाने दे दिए और कहा, "इन्हें अच्छी, उपजाऊ जमीन में बो देना।" भाई ने ऐसा ही किया, फसल में ५०० दाने आए, दूसरे वर्ष पचास हजार दाने आए और तीसरे वर्ष तो पूरा कोठार भर गया।
यात्रा से लौटने पर ससुरने दाने वापस मांगे, पहली ने कहा, "मैंने तो फेंक दिए, उसको रखने में क्या फायदा था? चाहिए तो नये ला दूं।" ससुरने कहा, “तुम्हारा नाम उज्जिका, अब से तुम्हें घर का कचरा निकालना है, घर को साफ रखना है, यह तुम्हारा काम है।" दूसरी ने कहा, "मैंने तो दाने खा लिए।'' उसको भक्षिका नाम दिया गया और रसोईघर सम्हालने को कहा। तीसरी ने कहा, "मैंने तीजौरी में सम्हाल कर रखे हैं।" वापस लाकर दिए। ससुरने कहा, "तुमने इनकी सुरक्षा की है, तुम्हारा नाम रक्षिका। घर की तिजौरी की चाबियां तुम्हे रखनी हैं, घर के सारे जेवर, जवाहरात तुम्हें सम्हालने हैं।'' चौथी ने कहा, “मैंने तो मेरे पीहर भेजे है, ऐसे नहीं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org