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१३३ जब पक्ष का, घर का वातावरण निरूत्साही होता है, तब प्रगति रूंध जाती है। यह तो जिनके भाग्य अच्छे होते हैं या जिनके स्वजन, परिजन अनुकूल होते है वे ही पुण्य के प्रकाश को प्राप्त कर सकते हैं। जो धर्मशील होते हैं उनकी प्रगति में अक्सर दूसरे पूरक बनते हैं। बहुत बार, स्पर्धा के कारण भी प्रगति होती है। स्वस्थ जीवन की स्पर्धा मानव को ऊंचे सोपानों तक पहुंचने में पंखरूप बनती है।
आनंद वस्तु में है या मन में? घर में मिष्टान बनाया हों, परंतु घर में कलह हो जाए तो ऐसे वातावरण में मिष्टान भी अच्छा नहीं लगता। इसके विपरीत यदि घर में खुशियों का वातावरण हो तो सूखी रोटी और कढ़ी भी मीठे लगते हैं। आनंद अशांति में नहीं, आनंद तो तृप्ति भरी शांति में निहित है।
आज कई ऐसे नेता हैं जिनके घर में कलह की होली जलती है, और वो दूसरों को ज्ञान प्रदान करने निलकते हैं। घर की आग बुझाये बिना, देश का भला करने जो निकले है, वे जहाँ जाएंगे, आग ही लगायेंगे।
यदि तुम धार्मिक बनना चाहते हो तो सुपक्ष तैयार करो, ताकि कल यदि तुम चले भी जाओ तो, तुम्हारे विचारों, तुम्हारे संतानो तथा स्वजनों द्वारा तुम जिवित रहो, लोग तुम्हें याद करें।
बालक के लिए संस्कृत में “आत्मज' शब्द प्रयोग होता है, आत्मा के संस्कार से जो जन्मा है, वह आत्मज। कल का कार्य करने वाला, पुत्र यानि इच्छाओं तथा मनोरथों का वारिस इन्सान के रक्त और प्यार का सर्जन, . उसमें लगाव, भावना व अनुभूति हैं।
माता पिता के हृदय उनके बालकों मे रहते हैं, पिता पुत्र को कहता है कि, “हमारी उर्मियां हमने तुम्हारे में उंडेली है, हमारे अपूर्ण उत्तम कार्यो को तुम्हें पूरा करना है।" इसका एक सुंदर उदाहरण है। एक वृद्ध का बेटा घर का छप्पर ठीक कर रहा था, खाने का समय हुआ, पिता खाने के लिए बुलाता है, पर वह नहीं आता, काम में व्यस्त है। अब बापने एक युक्ति
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