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________________ जीवन में सुपक्षता विश्व में कहने पूछने वाले बहुत मिल जाते हैं, परंतु धर्म क्षेत्र में उत्साह देने वाले लोग बहुत कम मिलते हैं। बहुत से लोग तो नाटक और सिनेमा घरों की तरह धर्मस्थानों को भी मनोरंजन का साधन मानते हैं। यहां प्रश्न यह उठता है कि, आदमी के विचार ऐसे क्यों हो गये? व्यक्ति में राग इतना बढ़ गया है कि वैराग्य को भूल ही जाता है। धर्म का मूल्यांकन किये बिना उसके प्रति रूचि जगना मुश्किल है, इसीलिए धर्म को सच्चे अर्थ में समझना जरूरी है। धर्म के यथार्थ और व्यावहारिक स्वरूप को यदि हमने समझ लिया तो निश्चित ही दुःखों, संकटों एवं अन्य दुर्गुणों से उबरने में सफल हो सकेंगे। धर्म को समझना एक बात है, और उसका आचरण दूसरी बात है। मेघकुमार ने भगवान महावीर का प्रवचन सुना, जो अंतर में उतर गया तब उनकी माँ को कोई आपत्ति नहीं थी। परंतु उपदेश को अमल में लाने की जब बात आई तब माँ को लगा कि अब लडका हाथ से गया। इसका कारण था कि माँ अपने पुत्र को धर्मकथा सुनने देने को तैयार थी, परंतु वह सुनकर साधु बन जाए, यह उन्हें मंजूर नहीं था। इस तरह धर्म आचरण का आडम्बर करने में सर्व सम्मत होते हैं, परंतु आंतरिक धर्म के दर्शन से लोगों को धक्का लगता है। सच्चा कार्य तो धर्म के सच्चे मूल्यांकनों को समझकर उसका आचरण करना है। १३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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