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________________ १०७ भाव कहाँ से पनपेगा ? केवल खादी के वस्त्र धारण करने से कोई अहिंसक नहीं हो जाता, यदि ऐसा होता तो उसकी वाणी से मत्स्य उद्योग, पोल्ट्री उद्योग की बातें भला कैसे निकल सकती हैं ? दया और धर्म का अति निकट संबंध है, जहाँ दया का दीपक नहीं वहाँ धर्म का प्रकाश कैसे रह सकता है ? एक शेठ के यहाँ एक नौकर था, जिसने शेठ की बेटी को बड़ा किया था। नौकर गाँव गया, लडकी बीमार हुई और मर गई। शेठने नौकर को गाँव में समाचार भेज दिए लडकी की मौत के । आठ महीनों बाद नौकर लौटा, घर में आते ही नौकर रोने लगा । शेठ ने पूछा, "क्यों रोते हों ?" वह गद्गद् कंठ से बोला, “शेठ मुलगी गेली ।" शेठ ने सोचा नौकर की लडकी मर गई होगी, वे कहने लगे, " जो जन्मा है, वह तो जाएगा ही उसमें रोना क्या ? कितने साल की थी लडकी ?" तब नौकर ने सोचा, शेठ गलत समझ रहे हैं, उसने कहा “शेठ तुमची मूलगी ।" यह सुनकर शेठ को अपनी पुत्री की याद ताजा हो गई, जोर जोर से रोने लगे । सारांश यह है कि नौकर की बेटी मर गई, ऐसा समझा था तो कुछ नहीं, अपनी बेटी मरी, उसका इतना शोक । कैसा है यह मोह ? यहाँ पर हमें विश्व एकता का विचार करना है, सबके दुख को समान दर्जा देना है। विश्व एकता की भावना के उदय होते ही हमें अयोग्य वस्तुओं का उपयोग, जैसे कि हिंसक दवाईयां, चमडे की वस्तुऐं, रेशम, कस्तूरी, हाथीदांत, मोती वगैरह अरूचिकर लगने लगेगा | एक बड़े साधु के साथ एक छोटे साधु विहार कर रहे थे, रास्ते में एक पानी से भरा तालाब देखा, बाल्यवृत्ति जागृत हो उठी, वो अपने पात्र को नाव बनाकर पानी में तैराने लगे । बडे साधु ने देखा, उनसे कहा, "पानी में जीव होते हैं, हमें ऐसा नहीं करना चाहिए ।" बाल मुनि की आत्मा जागृत हो गई " आत्मवत् सर्व भूतेषु" समझने वाला, ऐसा करता है, तो फौरन ही पश्चाताप रूपी अग्नि से शुद्धि कर लेते हैं। इस मुनि का नाम था, " अईमुत्ता मुनि" पश्चाताप की धारा में बहते बहते केवल्य ज्ञान की प्राप्ति हो गई । कल जो बुरे से बुरा व्यक्ति था, आज वो मन परिवर्तन करके, भला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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