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________________ ९४ तुम्हें बारह महिनों के लिए देशनिकाल।" और चौथे को कहा, “तुम तो अधमता की पराकाष्टा तक पहुंचे हो, अतः तुम्हें गधे पर उल्टा बिठाकर मुंह काला करके पूरे गाँव में घूमाकर, गाँव के बाहर निकाला जाएगा।" सभा में एक समझदार व्यक्ति बैठा था, उसने पूछा, “गुनाह समान तो सजा अलग अलग क्यों?" राजा ने कहा, "इसका मर्म बाद में समझ आएगा, अभी दूत को चारों की जानकारी प्राप्त करने हेतु भेजते हैं, देखते हैं क्या समाचार लाते हैं?" दूत ने चारों का अपने आँखों देखा हाल सुनाया - पहला व्यक्ति घर जाकर दरवाजा बंधकर के खूब रोया, उसने कहा “अरे विक्रम ने मुझे ऐसा कहा, इससे अच्छा तो मुझे तलवार से मार दिया होता, तो कम कष्ट होता।" देखिए इसकी मानसिक स्थिति, केवल एक वाक्य का इतना गहरा असर हुआ कि "बारह महीनों तक किसी को मुँह न दिखाऊं।" ऐसा विचार किया, इसका कारण उसमें लज्जा गुण था। दूसरे को सौ रूपये का दंड किया था, वह लोगों से कह रहा था, “अरे सौ क्या हजार रूपये दंड किए होते तो भी मैं भर देता, राजा को तो इस तरह कमाई ही करनी है।" देखिए, इसकी लज्जा जाने लगी है। तीसरे को देश निकाल मिला था, वह दिन को गाँव के बाहर चला जाता, रात को वापस गाँव में आ जाता छुपके से। वह लोगों से कहता, “राजा का ऐसा हुकम कौन मानें?" देखिए उसमें बेशर्मी झलकती है। चौथे को उल्टे गधे पर बिठाकर गाँव में घुमाया, तब वह कह रहा था "अरे वाह क्या मजा आ रहा है ? नगारे बज रहे हैं, लोग सब देख रहे हैं, ऐसा मौका बारबार थोडे ही मिलता है।" उसकी पत्नी देखने आई तब उसने कहा "थोडा ठंडा पानी तो लाना, इतनी देर नगारे भले बजे।" देखी इसकी बेशर्मी ? इसमें से सार यह निकलता है कि ज्ञानी और लज्जावान व्यक्ति छोटी सी बात से बोध प्राप्त कर, ऊपर चढते हैं। हमें भी अपनी भूल बताने वाले पर क्रोध करने के बजाय, उसे अपना हितैषी मानना चाहिए। जीवन का हरपल कुछ प्राप्त करने के लिए है, उसे व्यर्थ गंवाईए मत। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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