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________________ ९३ थोडे समय पहले एक व्यक्ति मेरे पास आया कहने लगा “अट्ठम करना है, खाये बिना चलेगा परंतु सवेरे बिना दूध, शक्कर की थोड़ी काली चाय पी लूं तो चलेगा?'' यह तो बात हुई कि पूरा हाथी निकल गया, पूंछ अटक गई। खाना पीना छोड़ने को तैयार है, पर चाय का व्यसन उस पर हावी हो गया है। व्यसनों को छोड़ना प्रथम पुरुषार्थ है, कुछ लोग तो प्रवचन के दौरान भी तम्बाकू की डिब्बी एक दूसरे को देते हैं। यह जीवन की रूग्णता है। जो व्यक्ति व्यसन मुक्त होना चाहता है, उसे व्यसनों ने घेरा कैसे? हमें यह जानना चाहिए। जन्म से तो, थे नहीं, फिर ये आए कहाँ से? और यदि स्वीकारा है, तो यह भी स्वीकार करो कि त्याग देने की शक्ति भी है, ऐसा समझने वाला सदाचार की तरफ प्रयाण कर सकता है। ज्ञानी पुरूषों के वचन सुनने का हेतु यही है कि हमारे अन्दर परिवर्तन आए और विकास हों। इसके लिए प्रात:काल थोडी देर प्रार्थना में बैठना चाहिए, सुंदर विचार, ज्ञान पाठ आदि में पूरे दिन ताजगी रहेगी। मन रूपी भूमि को प्रार्थना रूपी जल से सींचने से चित्तवृक्ष सुंदर रहेगा। हो सके तो एक छोटी सी पुस्तिका साथ रखकर जब भी अवकाश मिले, उसे पढ़ना चाहिए। रात्रि में घर पर आओ तब शांति बनाए रखो, घर का प्रत्येक सदस्य यदि ऐसा करे तो जीवन सुखमय बन सकता है। आंतरिक लज्जा जीवन में कैसी सहायक बनती है उसका एक उदाहरण है- एक दिन विक्रम के पास चार समान अपराधियों को लाया गया, सबके गुनाह समान थे, परंतु सजा अलग अलग दी। पहले उनकी स्थिति, संयोग, संस्कार, लालन पालन की जानकारी हासिल कर ली। पहले को सिर्फ इतना ही कहा, "तुम्हारे जैसा खानदानी, संस्कारी व्यक्ति ऐसा करता है?' दूसरे को कहा, “तुम नालायक हो तुम्हें सो रूपिये का दंड।" तीसरे को कहा, “तुम्हारे जैसे लोग दूसरों को बिगाडते है, इसलिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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