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लज्जा
हमने अंतिम सद्गुण में देखा कि धार्मिक व्यक्ति की आत्मा में सुदाक्षिण्य भाव तथा आँखो में नैसर्गिक करूणा होती है। फिर आता है लज्जा गुण, अयोग्य कार्य करने के पहले उन्हें लाज आती है कि “यह काम तो मैं नहीं कर सकता।' और कभी ऐसा छोटासा अकार्य हो जाए तो, उसका भारी पश्चाताप होता है। लज्जा गुण धारक व्यक्ति सदाचार का ही सेवन करता है, सत्कार्य में ही प्रवृत्त रहता है। परंतु जिन्हें बुरी आदतें पड गई हैं शराब पीने की, सिगारेट वगैरह पीने की, उन्हें सुवासित भोजन के समय भी दुर्गंध युक्त पदार्थ ही पीने, खाने की इच्छा रहती है। दुराचारी को दुराचार किए बिना चैन नहीं पडता, सदाचारी को सदाचार बिना शांति नहीं, इसीलिए हमेशा ज्ञानी का सत्संग करना चाहिए ताकि हृदय में सदाचार का भाव बना रहे।
मांसाहारी को मांसाहार प्रिय लगता है, शाकाहारी उसे पल भर के लिए देखना भी पसंद नहीं करता। ऐसा क्यों ? मांसाहारी क्रूर एवं दूषित वातावरण में रहता आ रहा है, जब कि शाकाहारी दया, कोमलता, संस्कारमय वातावरण में जीने वाला है, इसीलिए एक चिंतक ने कहा कि मेरा संग व संजोग अच्छे थे जिन्होंने मुझे बुरे कामों से दूर रखा।
संयोगो का क्या असर होता है? एक दृष्टांत से देखते हैं। सुलस का पिता कसाई था, उसकी इच्छा न होते हुए भी उसके स्वजनों, स्नेहिययों ने
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