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________________ एसे समर्पण में ही मानव जीवन की सच्ची धन्यता है। ऐसा ही उदाहरण अपने इतिहास में राणकपुर का है। इस महामंदिर में १४४४ स्तंभ है, लाख-लाख रूपये खर्चने पर भी एक स्तंभ का निर्माण नहीं हो सकता। इसका निर्माण करवाने वाले थे, धरणा शाह पोरवाल। जब किसीको विज्ञान की जानकारी नहीं थी, तब इसका निर्माण हुआ, सातपुड़ा पर्वत में यह मंदिर अपने आप में कला का बेजोड़ नमूना है। आज भी वहाँ के वातावरण में पवित्र परमाणुओं का अनुभव किया जा सकता है, ध्यान में आत्मा का आल्हाद सहज प्राप्त होता है। ऐसे पवित्र स्थलों की धूलि माथे पर चढ़ाने से चित्त में उदारता तथा हृदय में पवित्र भाव पैदा होते हैं। ऐसी बेमिसाल सुंदर कलाकृति, परंतु धरणा शाह का कहीं नामोनिशान नहीं, सिर्फ एक स्तंभ में धरणा शाह हाथ जोडकर खडे हैं। वह काल ऐसा था जब देने वाले थे, तो सामने ना कहने वाले भी ऐसे ही थे। दान तो प्रेम भक्ति का मधुर खेल है। दान भावना जगेगी, तभी समाज का उत्थान होगा, यह सुदाक्षिण्य भाव समर्पण भाव को जगाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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