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के लिए? सोचिए।
उतुंग शिखरों पर विपुल मंदिरों की नगरी यानि पालीताणा, जग विख्यात है। परंतु ये मंदिर किसने बनवाए ? क्या आप जानते हैं ? ये तो कितने ही . अनामी हृदयों की भावनाओं का अर्पण है, प्रेम का परिश्रम है।
महामंत्री बाहड मंदिरों का जिर्णोद्धार करवाना चाहते थे, परंतु गाँव के लोगों की भी ऐसी भावना थी कि वे लाभ लें। इन उत्तम भावनाओं से इस मंदिर नगरी का निर्माण हुआ। सबने लाभ लिया है।
यदि हम यहाँ नहीं देंगे स्वेच्छा से तो, काल मर्यादा पूरी होने पर जबरदस्ती छिन जाएगा, यह हमारी पामरता है। मृत्यु पश्चात् हम कुछ भी साथ नहीं ले जा सकते, यह जानते हुए भी हम छोड नहीं सकते। देने से विराटता प्रगट होती है, जमा करके रखने से इन्सान बौना ही बना रहता है। ___ मानव के लिए भावनाओं का भोजन यानि दिल की विशालता। असीम
और सीमाबद्ध दोनों ही शक्तियां हमारे अन्दर मौजूद हैं। ऐसी ही असली शक्ति का प्रदर्शन भीमा कुंडलिया ने दिखाया था।
जीर्णोद्धार की बात भीमा के कानों में पडी। दान का प्रेम जगा, उसने सोचा “मेरे पास जो है, मैं भी उस सबका दान क्यों न कर दूं?" एक सामान्य आदमी, घी का व्यापारी, सब मिलाकर केवल डेढ रूपये की पूंजी। कपड़ों पर घी तथा धूल के धब्बे, मैले कुचले वस्त्र, परंतु दान की भावना प्रबल। दान भाव लाखों के आधार पर नहीं टिका है। मन के उत्कृष्ट भावों पर आधारित है। उसे बस अब दान देने की बेचैनी होने लगी, जैसे बादल भरते हैं तब बरसने की चाह जगती है। इन्सान में भी ऐसे ही देने की चाह जागृत होनी चाहिए, कि वक्त आने पर अपना सब कुछ लुटा दूं।
भीमा अपना सर्वस्व, जीवनआधार, धंधे की पूंजी यानि डेढ रूपया लेकर बाहड मंत्री की हवेली पर आया। उसने देखा हजारों धनवान लोग वहाँ लाखों स्वर्ण मुहरें, रत्न अर्पण करने को तैयार है, उसने सोचा “यहां मेरा भाव कौन पूछेगा।" मन निराश हो उठा, दूर खडा वह देख रहा है कि बाहड
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