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________________ दाक्षिण्यमयी दान भावना सुदाक्षिण्यवान आत्मा कैसी होती है? यह हम देख रहे हैं। अपने कुटुम्ब के लिए तो पशुपक्षी भी प्रयत्न करते हैं, मकड़ी के जाले को देखकर कलाकार स्तब्ध रह जाता है, कई बार पशुपक्षी मानव से ज्यादा अच्छी तरह काम करते हैं। पशुपक्षीओं का अपने कुटुम्ब के प्रति समर्पण तो देखिए। एक दूसरे के लिए कितना प्रेम? है मानव में ऐसी वफादारी? पशुपक्षी गर्मी, सर्दी, बरसात इत्यादि सहकर भी साथ रहते हैं, जब कि इन्सान अपने बच्चे, पत्नी को छोड़कर क्लबों में घूमता है। क्या मानव आज पशुपक्षी जितना भी करता है? मकड़ी का जाल या सारस की जोड़ी को जरा देखिए, वो एक दूसरे के वियोग में प्राण त्याग देते हैं। ईश्वर की भक्ति को भी कवि ने पक्षी की उपमा दी है, “है प्रभु मैं तुझे चक्रवाक और चक्रवाकी की तरह चाहता हूं। वो दोनों जैसे एक दूसरे के लिए तड़पते हैं, वैसे ही मैं तेरे दर्शन के लिए तड़पता हूं।" यह सुंदर उपमा हमें पक्षियों से मिलती है। हमारा दाम्पत्य जीवन चक्रवाक तथा चक्रवाकी की तरह है, पक्षी में दिल और भावना की एकता होती है। तड़पते हुए सारस की अंतरव्यथा देखें तो पत्ता चलेगा कि प्यार किसे कहते हैं? परंतु अमर होने का अधिकार तो सिर्फ मनुष्य को ही मिला है। मनुष्य को पक्षी की भांति साथ रहकर केवल मरना ही नहीं है, अपितु अमर होना ८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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