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________________ दीपक की लौ ६९ को इस कार्य के लिए संपूर्णतः समर्पित करने के लिए तैयार हूँ। इस कला में प्रबुद्ध होने के लिए कितने साल लगेंगे?' शिक्षक ने जवाब दिया, 'बारह साल।' 'बारह साल?' तरुण को विश्वास नहीं हुआ। उसने पूछा, 'अगर मैं दिन का हर पल इस शिक्षा में व्यतीत करूँ और सिर्फ तीन घंटे सोऊँ, तो कितने साल लगेंगे?' 'तो फिर बीस साल लगेंगे!' तरुण कुछ भी नहीं समझ पाया। तब शिक्षक ने समझाया, 'जो जल्दबाज़ी में है और केवल परिणाम पर ही नज़र रखता है, पद्धति पर नहीं, उसे परिणाम नहीं मिलता है। मैं जीवन के लिए पढ़ाता हूँ, परिणाम के लिए नहीं। अतिकुशल खड्गधारी बनने का अर्थ है जागृत रहना, किसी को मारे बगैर खुद के बचाव का ज्ञान सीखना। तुम्हें यह जान लेना चाहिए कि तलवार में मित्रता की धार नहीं है। यदि मैं सिर्फ परिणाम के लिए सिखाऊँगा, तो तुम्हारे टुकड़े हो जाएंगे। इसका क्या फायदा? मैं इससे ज़्यादा तुम्हारे जीवन की खुशहाली चाहता हूँ।' अब तरुण को बात समझ में आई। उसने कहा, 'गुरुजी, मैं समय के बारे में सोचना छोड़ दूंगा। मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि मुझे शिष्य के रूप में स्वीकार करें। मैं आपसे ज्ञान ग्रहण करने के योग्य बनूँगा।' उस दिन से वह तरुण उस शिक्षक का शिष्य माना गया। अब चूंकि उसका मन शांत था, उसे जागरूकता के लिए विशेष प्रशिक्षण मिल रहा था। इस प्रशिक्षण का प्रथम कार्य था अपने शिक्षक की सेवा। वह उनके कपड़े धोता, माली का काम करता, भोजन पकाता, तलवारों को सही तरीके से रखता एवं अनेक अन्य बातों का ध्यान रखता। छह महीने तक उसे एक पल के लिए भी तलवार को पकड़ने या प्रयोग करने की शिक्षा नहीं दी गई, लेकिन वह धैर्यवान था। एक दिन जब वह बगीचे में काम कर रहा था, उसके शिक्षक ने एक · लकड़ी की तलवार से उसपर वार किया और कहा, 'आज से मैं अचानक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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