SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ जीवन का उत्कर्ष हम अपने ज्ञान का उपयोग क्यों नहीं करते? क्योंकि बौद्धिक जानकारी एवं भावनात्मक एहसास, दोनों अलग-अलग दिशाओं में काम करते हैं। उदाहरणार्थ, हमारी बुद्धि जानती है कि जीवन में जो भी आता है, उसे एक न एक दिन जाना है। हम अच्छी तरह जानते हैं कि सभी व्यक्ति एक यात्रा पर हैं, आगमन एवं प्रस्थान कर रहे हैं। लेकिन जब वैसी घटना हमारे जीवन में घटती है, तब क्या हम उसे झेल पाते हैं? बुद्धि से हम उसे समझते हैं, लेकिन भावना के स्तर पर हमारी कैसी प्रतिक्रिया होती है? ध्यान के द्वारा हम उस ज्ञान को अपनी भावना में समाविष्ट करते हैं। अपनी भावनाओं की अनुभूति से हम अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाते हैं। अपने दृष्टिकोण के बदलने से हम किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। अब हमारे लिए कुछ भी अकस्मात या पीड़ादायक नहीं होता। समझ हमारे अनुभव का अंग बन गई है। ____ ज्ञानी संसार में रहता है, मगर उसका बनकर नहीं। वह पूर्ण अभिज्ञता से रहता है। एक बौद्ध कथा है जो इसकी पुष्टि करती है। एक प्रख्यात खड्गधारी अपनी मरण शय्या पर था। उसके पुत्र, मातजुरा ने पूछा, 'पिताजी आपकी अंतिम इच्छा क्या है?' पिता ने जवाब दिया, 'हे पुत्र, मेरा स्वप्न था कि तुम सर्वश्रेष्ठ खड्गधारी बनो, लेकिन मैं उसे साकार नहीं कर पाया।' मातजुरा ने जवाब दिया, 'मेरी भी यही चाह थी, लेकिन इसके लिए कोई सही शिक्षक नहीं मिले, न ही आपके पास मुझे सिखाने का समय था।' पिता ने कहा, 'मेरी चाह इतनी प्रबल है कि मैं उसे पूर्ण करने के लिए तीन साल और जीऊँगा। हालाँकि मैं मरण शय्या पर हूँ, मगर मरूँगा नहीं।' पुत्र ने पूछा, 'मेरे शिक्षक कौन होंगे?' पिता ने उसे बैंजो के पास भेजा, जो उस समय के जाने माने शिक्षक थे। तरुण बैंजो के पास गया और प्रणाम करके कहने लगा, 'मैं आपके पास शिक्षा ग्रहण करके एक कुशल खड्गधारी बनना चाहता हूँ। मैं स्वयं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy