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________________ चतुर्थ - एकत्व भावना निर्भरता से मुक्ति इस संसार में अधिकांश व्यक्ति नहीं जानते कि उन्हें क्या चाहिए, मगर जीवन-पर्यंत उसके न मिलने की वजह से दुःखी रहते हैं। यही उनकी कड़वाहट का कारण है। वे शिकायत करते रहते हैं यह जाने बिना कि उन्हें क्या चाहिए। यह सरासर बेवकूफी लगती है, मगर सोचकर देखिए। जब आपका मन उदासी में डूबा हुआ हो और कोई पूछे, 'तुम दुःखी क्यों हो?', क्या आप अपने दुःख की असली वजह बता सकते हैं? या आप बेवजह किसी भी बात की शिकायत करने लगते हैं? चलिए इस पर गहराई से विचार करें। दुःख का असली कारण क्या है? क्या बाहरी पदार्थ वास्तव में भ्रमित या अपने आप में मोहित करने वाले हैं? क्या उनमें हमें परेशान करने की या अपनी ओर खींचने की कोई अंतर्जात शक्ति है? या उनके प्रति हमारी जो आसक्ति है, क्या उसी की वजह से हम उन्हें उस नज़र से देखते हैं? आसक्ति की वजह से ही हम बाहरी पदार्थों पर दोष थोपने लगते हैं। अगर हम करीब से देखेंगे, तो जान जाएँगे कि वे अपने आप में वस्तु मात्र हैं। हम दोषारोपण से परे जाना चाहते हैं, आसक्ति से परे, सीमित करने वाले इन कारणों से परे। यही हमारी खोज है। हम सतही जवाब या अस्थायी खुशी से संतुष्ट नहीं हो सकते हैं। असली साधक किसी क्षणिक खुशी की खोज में अपना समय व्यतीत नहीं करते हैं। वे जानते हैं कि पानी के बुलबुले की तरह वैसी खुशी पल भर में गायब हो जाएगी। इसलिए हम दोनों को देखना चाहते हैं - सत्य और असत्य को, हमारे शाश्वत तत्त्व को और हमारे व्यसनों को। सच्चे गुरु और उनकी शिक्षा हमें सत्य की गहराई में ले जाते हैं और हमारे व्यसनों के स्वभाव को समझने में मदद करते हैं। वे हमें स्वयं से पूछने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, 'व्यसन क्या है? हमने अपने चारों ओर इतने व्यसन कैसे बाँध लिए हैं? हमने उनके साथ किन-किन रूपों में अपनी पहचान बनाई है? क्या उनके बिना हमारा जीवन सूना, दुःखी, बेसहारा प्रतीत होता है?' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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