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जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति इन मधुर शब्दों को सुनते ही उसका अंतर्मन मोम की तरह पिघलने लगा। गालों पर अश्रु बहने लगे। उसकी पत्नी ने धीमे से कहा, 'क्या मैंने आपसे नहीं कहा था कि आप बुरे नहीं हैं, वह तो सिर्फ आपकी संगत थी। क्या ये अश्रु नहीं दिखा रहे हैं कि आपका हृदय कितना अच्छा और कोमल है?' पति का मन हुआ कि पत्नी के चरण छू ले, 'मैंने संतों के बारे में सुना है, मगर अगर तुम्हें नहीं देखता, तो उनके बारे में कभी विश्वास नहीं करता। अब मैं जानता हूँ कि मुझे फिर से जाने की आवश्यकता नहीं है।' उस क्षण से वह एक उद्देश्यपूर्ण जीवन की तरफ अग्रसर होने लगा।. . .
अपने स्थायी तत्त्व का ज्ञान आपके जीवन को सार्थक बनाता है। इसलिए अपने उत्कर्ष पर ध्यान करते हुए इस विश्व को अपनी गहरी समझ में एक कर लें। अपने वास्तविक सत्व को उजागर होने दीजिए और बाह्य सतह को पिघलने दें। इस सत्य के धरातल के कई मार्ग हैं - आप अपने पथ को स्वयं निर्मित करते हैं। अपने सत्य तक पहुँचने के लिए और मुक्ति की अनुभूति करने के लिए एक ऐसा कदम आगे बढ़ाइए जो सकारात्मक भावनाओं से पूर्ण है, रोशनी से प्रज्वलित है और अभिज्ञता से स्पंदित है।
चिंतन के बिंद
सतत चलायमान तो बदलाव की निरंतर प्रक्रिया है, वह एक परिष्कृत और लयबद्ध गति में गमन कर रहा है। मैं मध्य में हूँ, स्थिर, अभिज्ञ।
मुझे मध्य से परिधि की तरफ देखने दो। मुझे परिवर्तन की लहरों का उस बिंदु से अवलोकन करने दो जो सभी बिंदुओं का द्रष्टा है।
चक्र का हर घुमाव मेरे बंधन का या मेरी मुक्ति का कारण बन सकता है। अभिज्ञता के साथ मैं हर घुमाव का उपयोग एक चुनौती के जैसे कर सकता हूँ, स्वयं को कर्मों से मुक्त करने के लिए, बदलाव लाने के लिए, नवजीवन की अनुभूति करने के लिए, एवं अपने सत्य के समीप पहुँचने के लिए।
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