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जीवन का उत्कर्ष
अब राजा ने पूछा, 'महावीर कौन हैं?'
'महाराज, यहाँ से पंद्रह मील की दूरी पर आपकी राजगृही नगरी में वे एक अति सुंदर जीवन व्यतीत कर रहें हैं। वहाँ जाइए और अपने आप देखिए ।'
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उस युवा संत की बातों से प्रभावित होकर बिंबसार महावीर के पास गए और उसी समय उनके अनुयायी बन गए। वह उनके संरक्षक भी बन गए और अपने संपूर्ण जीवन के दौरान उन्होंने महावीर के साथ-साथ बुद्ध को भी सहयोग दिया जो उस समय उनके राज्य में निवास करने और शिक्षा देने आए थे। बिंबसार ने अपने जीवन को उनकी शिक्षा और नेक कार्यों के प्रचार-प्रसार में लगा दिया क्योंकि उन्हें लगा कि यही उनके जीवन का ध्येय है।
जब हम अशरण पर चिंतन करते हैं, तब हम एक अनूठे सोपान की समझ को पा लेते हैं। हम देखते हैं कि सच्ची सहायता चेतन के पावन स्रोत से मिलती है। वह एक ऐसा प्रवाह है जो हमेशा बहता रहता है। हमें तो सिर्फ़ पर्दा हटाना है और स्वयं को उस ऊर्जा के प्रति जागरूक कर देना है जिसका स्वभाव है- अनंत ज्ञान, अनंत आनंद और अनंत दर्शन । जीवन से जुड़ने के लिए हमें सिर्फ़ अपने चेतन को अंतर की तरफ मोड़ना है। वही हमारी शरण है, हमारी खुशहाली, हमारी स्थायी संपत्ति, हमारा अदृश्य शरणागत जो कभी खत्म नहीं होगा ।
अगर आप इस स्रोत के साथ एकात्म हो रहे हैं, तो आप असुरक्षित नहीं हैं, लाचार नहीं हैं क्योंकि आप अंदर से सुरक्षित है। जैसे ही आप इस सुरक्षा को जानने लगेंगे, आप स्वयं को ऊपर उठाने लगेंगे। डूबती हुई नाव फिर से तैरने लगेगी।
युवा संत अनाथ और महाराज बिंबसार की तरह इस ध्यान का उपयोग करें। आत्म-निरीक्षण और चिंतन के लिए समय रखिए। जब भी भय आए, पूछिए, 'मैं क्यों भयभीत हूँ? यह घबराहट क्यों है? भय का
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