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________________ असुरक्षित संसार में स्वयं की सुरक्षा 'ठीक मध्य रात्रि के समय मेरी आँखें इतनी शांत और स्वच्छ हो गईं कि मैं सारी रात शांति से सो सका। सवेरे जब मेरी पत्नी ने मुझे देखा, तब उसने सोचा कि रात को उसने विशेष रूप से चंदन का लेप लगाया और उसका काफी असर हुआ है। चिकित्सक ने सोचा कि उसकी दवाई अब काम कर रही है। वैद्य ने सोचा कि उसकी जड़ी-बूटियों का रस असर ला रहा है। सभी मेरे स्वस्थ होने का श्रेय लेना चाहते थे। ___दोपहर को जब मैंने आँखें खोली, सभी मुझसे अपने-अपने विचार कहने लगे। मैंने उनसे कहा - आप लोगों ने मेरे लिए जो भी कुछ किया, उसके लिए मैं आभारी हूँ। आपके ध्यान, सहयोग एवं भावनाओं की मैं कद्र करता हूँ। मगर मुझे सत्य कहने दीजिए। जब इस संसार में कोई असुरक्षित हो जाता है, तब भी एक शरण उसे प्राप्त है - उसकी ऊर्ध्व आत्मा। 'मैं उस अदृश्य आंतरिक शक्ति के साथ जुड़ने लगा जो सदा से है, एवं अंततः मैं उसके साथ लयबद्ध हो गया। मेरा मन जो विचारों के झंझावात की सृष्टि कर रहा था, शांत हो गया। शांति की उस स्थिति में, मैं उस पावन अवस्था से जुड़ गया और सोचने लगा, 'मैं उन सभी पावन आत्माओं की शरण लेता हूँ जो पूर्ण चेतन हैं। मैं उनकी ऊर्जा के साथ जुड़ता हूँ। विश्व के संत जहाँ भी हैं, मैं उनके साथ एक होता हूँ। मैं धर्म की उस शिक्षा में लीन होता हूँ जो सिद्ध पुरुषों की करुणा, प्रेम और गहन आंतरिक शांति से उत्पन्न होती हुई है। वह विचार औषधि में बदल गया। वह मेरी चेतना के लिए एक शांत लेप बन गया।' तब बिंबसार ने पूछा, 'उसके बाद आपने क्या किया?' संत ने आगे कहा, 'जब मैं ठीक हो गया, तब मैंने अन्य पथ अपनाने का निश्चय किया। मैंने अपने ऐश्वर्यपूर्ण जीवन का त्याग कर दिया। अब मैं अशरण के पथ पर हूँ। इसीलिए मैं अनाथ हूँ, बिना किसी सांसारिक शरण या गुरु के। अगर आप मेरे आध्यात्मिक गुरु को जानना चाहते हैं, तो वे हैं अरिहंत महावीर।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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