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जीवन का उत्कर्ष 'चिकित्सक आए, जड़ी-बूटी वाले आए, मगर कुछ भी असर नहीं हुआ।
'यहाँ पर मेरा ख्याल रखने के लिए इतने सारे लोग थे, मगर वे मेरी रक्षा नहीं कर सके। शरीर का रोम-रोम अग्नि की तरह जल रहा था। मैं रो रहा था। महाराज बिंबसार, मेरी कहानी सुनिए! मैं इतना लाचार था! मेरी अर्धांगिनी, जो मुझे हृदय से चाहती थी, उसने मेरे शरीर को शीतल करने के लिए चंदन का लेप तैयार करके लगाया। मगर जैसे ही लेप सूखने लगा, जलन बढ़ने लगी। इसलिए हर दो, तीन, चार घंटे में लेप लगता रहा। मगर बार-बार लगाने से उससे ठंड लगने लगी। ___'महाराज, क्या आप मेरा विश्वास करेंगे? इक्कीस दिन के अंदर ही मैं अस्थि-पंजर मात्र बन गया, न ही कोई भोजन या दवाई पचा सका। तब मैंने सोचा कि मैं क्या करूँ? मैं बुरी तरह घबरा गया, आसपास मेरी पत्नी, माँ और नौकरों की उपस्थिति के बावजूद मैं बिस्तर में अकेला था। न कोई शरण, न ही कोई सहारा।
'तब मेरे दिमाग में एक विचार उठा। एक बार जब मैं अपने अश्व पर कहीं जा रहा था, तब मैंने महाश्रमण महावीर की वाणी सुनी। वे कह रहे थे - जब तुम बेसहारा हो जाओ और कहीं सुरक्षा नज़र नहीं आए, तब इन चार पावन तत्त्वों की सुरक्षा स्वीकार करो : अरिहंत - जिन्होंने अपनी
आंतरिक कमजोरियों पर विजय प्राप्त कर ली है; सिद्ध - पूर्ण आत्माएँ, साधु - सारे संत जिनकी ऊर्जा से इस विश्व में स्पंदन हो रहा है; धर्म - वह पावन शिक्षा जो ज्ञानी पुरुषों से मिलती है। पावन एहसास के साथ उनकी तरफ बढ़ो। जब कहीं कोई शरण न हो, तब इन चारों की शरण में आ जाओ।
'यह विचार मेरे मन की तरफ बहने लगा। मैंने सोचा - आज जब मेरी रक्षा करने के लिए कोई नहीं है, मैं पूर्ण रूप से स्वयं को इनके प्रति समर्पित कर दूं। मेरा मन उन पावन शब्दों को बार-बार स्मरण करने में इतना लीन हो गया कि मेरे शरीर में ऊर्जा समाने लगी।
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