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असुरक्षित संसार में स्वयं की सुरक्षा
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सैर करते हुए उन्होंने वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ संत को देखा और सोचने लगे 'यह युवक यहाँ बैठकर ध्यान क्यों कर रहा है? शायद गरीबी में डूबा हुआ है। मुझे इसकी मदद करनी चाहिए।' उन्होंने पुकारा, 'युवक, क्या कर रहे हो? तुम तो एक भिक्षुक नज़र आते हो ।'
'हाँ महाराज,' युवा संत ने जवाब दिया।
'तुम्हारा नाम क्या है?' राजा ने पूछा।
'मेरा नाम है अनाथ, यानी असुरक्षित । मैं बिना किसी सुरक्षा के हूँ।'
राजा अवाक रह गए। 'जब मेरे जैसा राजा इस पूरे प्रदेश का नाथ है, तब तुम स्वयं को अनाथ कैसे कह सकते हो ?'
'महाराज', संत ने जवाब दिया, 'क्या मैं अपनी कहानी सुनाऊँ? क्या आपके पास समय है?"
'हाँ', राजा ने आतुरता से कहा । 'मैं तुम्हारी कहानी सुनना चाहता हूँ।'
उसने अपनी कहानी शुरू की, 'यह तब की बात है जब मैं एक युवक था। मेरे पास सब कुछ था एक सुंदर पत्नी, बहुत बड़ा परिवार, वैभवपूर्ण कोठी, बेशुमार दौलत, अन्न और गहने। सभी मुझे चाहते थे। तब मैं यौवन की पराकाष्ठा पर था। मैं इतना अहंकारी बन गया था कि मैं नीचे नहीं देखता था। मुझे लगता था मानो सारा संसार मेरे चरणों में है।
'यह अहंकार मेरे अंदर बढ़ता चला गया। फलस्वरूप, मैं दूसरों के साथ इस तरह पेश आने लगा मानो उनकी कोई औकात ही नहीं है ।
'फिर एक दिन मैं बगीचे में सैर करने के पश्चात् घर आया, थोड़ी बेचैनी महसूस कर रहा था। सरदर्द होने लगा और ज्वर बढ़ने लगा। शाम ढलते-ढलते मैं बिस्तर में पड़ गया। मेरे पूरे शरीर में कंपन होने लगी। मेरी माँ जो मुझसे बहुत प्यार करती थी, चिंतित होकर बोली - वत्स, मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकती हूँ? मैं लाचार महसूस कर रही हूँ। मुझे कुछ लेकर आने दो।
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