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________________ असुरक्षित संसार में स्वयं की सुरक्षा कारण क्या है? बस एक ही कारण है कि मैं अपने अदृश्य संसार से जुड़ा हुआ नहीं हूँ।' उस अदृश्य संसार के स्पंदन से जुड़कर अपनी आंतरिक शक्ति को बढ़ाइए। इस संपूर्ण मंत्र को प्रकट में कहें या शांति से सुनें। चत्तारि मंगलं : यह चार मंगल हैं। अरिहंता मंगलं अरिहंत (आंतरिक शत्रुओं को जीतने वाले) मंगल हैं। सिद्धा मंगलं : सिद्ध (पूर्ण आत्माएँ) मंगल हैं। साहु मंगलं : साधु मंगल हैं। केवली पण्णत्तो धम्मो मंगलं केवली प्रतिपादित धर्म मंगल है। चत्तारि लोगुत्तमा : ये चार सर्वोच्च हैं। अरिहंता लोगुत्तमा अरिहंत सर्वोच्च हैं। सिद्धा लोगुत्तमा सिद्ध सर्वोच्च हैं। साहु लोगुत्तमा : साधु सर्वोच्च हैं। केवली पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा : केवली प्रतिपादित धर्म सर्वोच्च है। चत्तारि सरणं पवज्जामि : ये चार शरण हैं। अरिहंते सरणं पवज्जामि : अरिहंत का शरण लूँ। सिद्धे सरणं पवज्जामि : सिद्ध का शरण लूँ। साहु सरणं पवज्जामि : साधु का शरण लूँ। केवली पण्णत्तं धम्म सरणं पवज्जामि : केवली प्रतिपादित धर्म, यानी अहिंसा, शांति, प्रेम और करुणा की शरण लूँ। जब आपकी क्षुद्र आत्मा इन चार शरणों में लीन हो जाएगी, तब आपकी ऊर्ध्व आत्मा यानी आपका सत्य उभरने लगेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001806
Book TitleJivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, Principle, & Religion
File Size11 MB
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