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________________ आकाश, शब्द और स्पर्श तन्मात्र से वायु, शब्द स्पर्श और रूप तन्मात्र से तेज (अग्नि), शब्द, स्पर्श रूप एवं रस तन्मात्र से जल और पाँचो तन्मात्र से पृथ्वी की उत्पत्ति होती है। जीवों के शरीर तथा वृक्ष आदि इन पंचभूतों के समुदाय रूप हैं। सत्व गुण के लक्षण बताते हैं - प्रकाश, लघुता और प्रीति। ये सत्व गुण के कार्य अथवा लक्षण हैं। शोक, ताप, भेद, स्तम्भ, उद्वेग और अपद्वेष – ये रजस् गुण के कार्य हैं। आवरण, सादन, बीभत्स, दैन्य और गौरव – ये तमस् गुण के कार्य हैं। सत्वगुण लघु एवं प्रकाशक है। सत्व का प्रयोजन वस्तु को प्रकाशित करना है। वह सुख स्वरूप है। रजोगुण उपष्टम्भक (उत्तेजक) अर्थात् प्रवृत्तिशील है। तमोगुण गुरू अर्थात् भारी एवं आवरणक (अवरोधक) है। इस प्रकार स्थूल एवं सूक्ष्म रूप से प्रकृति की व्याख्या की गई है। अब पुरूष का स्वरूप बताते हैं - पुरूष का स्वरूप चैतन्य है। अन्धे और पंगु के समान प्रकृति और पुरूष का उपभोग के लिये संयोग संबंध होता है। उपभोग और शब्द (वचन व्यवहार) आदि की उपलब्धि पुरूष के होने पर ही घटित होते हैं। प्रश्न यह उठता है कि, पुरूष एक है अथवा अनेक हैं ? इसके उत्तर में कहते हैं , अनेक है। पुनः प्रश्न उठता है कि, पुरूष अनेक कैसे हैं ? तो कहा गया, जन्म के नियम से अर्थात् विभिन्न व्यक्तियों का जन्म अलग-अलग देश और काल में होता है। मरण के नियम से अर्थात् विभिन्न व्यक्तियों का मरण अलग-अलग देश और काल में होता है। 'करण' के नियम से अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति की इन्द्रियाँ (करण) अन्य व्यक्तियों से अलग-अलग होती हैं। साथ ही सबकी प्रवृत्ति भी अलग-अलग होने से पुरूष अनेक हैं। पुरूष को ही आत्मा कहते है। अब प्रमाण के विषय में कहते हैं। प्रमाण तीन प्रकार के हैं - 1. प्रत्यक्ष, 2. अनुमान और 3. आगम। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001804
Book TitleSarvsiddhantpraveshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2008
Total Pages50
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size3 MB
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