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8. तर्क :- संशय से रहित होकर कथन करना तर्क है, यथा - स्थिर होने से यह पुरूष नहीं, ठूठ ही है। 9. निर्णय :- संशय एवं तर्क से परे जो निश्चित ज्ञान है, वह निर्णय कहलाता है। 10. वाद :- वाद कथा तीन प्रकार की है - वाद, जल्प और वितण्डा। 11. जल्प :- वाद को जीतने की अभिलाषा से छल, जाति, निग्रह स्थान आदि का सहारा लेना जल्प कहलाता है। 12. वितण्डा :- किसी भी प्रकार से स्वपक्ष की स्थापना करना वितण्डा है। 13. हेत्वाभास :- अनैकान्तिक आदि हेत्वाभास है। 14. छल :- कही हई बात का अर्थ बदलकर उसमें दोष का संकेत करना छल कहलाता है। 15. जाति :- समानता और असमानता के आधार पर दिखाया गया दोष 'जाति' कहलाता है। 16. निग्रहस्थान :- जहाँ वादी अथवा प्रतिवादी को पराजय स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया जाता है, वह निग्रह स्थान है। निग्रह स्थान बाईस प्रकार के हैं जो इस प्रकार हैं :(1) प्रतिज्ञा हानि (प्रतिदृष्टान्त के धर्म (हेतु) को अपने दृष्टान्त में स्वीकार कर लेना।) (2) प्रतिज्ञान्तर (3) प्रतिज्ञा विरोध (4) प्रतिज्ञा संन्यास (जब वादी साधन-दोष के निवारण में समर्थ न होने पर अपनी प्रतिज्ञा से च्युत हो जाये।) (5) हेत्वान्तर (6) अर्थान्तर (7) निरर्थक (8) अविज्ञातार्थ (9) अपार्थक (10) आप्राप्तकाल (11) न्यून (12) अधिक (13) पुनरूक्त (14) अनुभाषण (15) अज्ञान (16) प्रतिभा (17) विक्षेप (18) मतानुज्ञा (19) पर्यनुयोज्योपेक्षण (20) निरनुयोज्यानुयोग (21) अपसिद्धान्त और (22) हेत्वाभास।
इति न्याय दर्शन
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