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________________ सर्वसिद्धान्त प्रवेशक समग्र विश्व के स्वरूप के विज्ञाता जिनेश्वर परमात्मा को नमस्कार करके सभी सिद्धान्तों (सभी दर्शनों) में जो भी उनको मान्य तत्वों का स्वरूप है, उसे मैं यहाँ कहता हूँ : - सभी दर्शनों में प्रमाण (ज्ञान), प्रमेय (ज्ञेय) आदि के स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए यह विवेचन किया जा रहा है -- न्यायदर्शन - नैयायिक दर्शन में 1 प्रमाण, 2 प्रमेय, 3 संशय, 4 प्रयोजन, 5 दृष्टान्त, 6 सिद्धान्त, 7 अवयव, 8 तर्क, 9 निर्णय, 10 वाद, 11 जल्प, 12 वितण्डा, 13 हेत्वाभास, 14 छल, 15 जाति और 16 निग्रहस्थान - इन सोलह पदार्थों के वास्तविक स्वरूप को जानने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसा माना गया है। (न्यायसूत्र 1/1/1) 1. प्रमाण :- जिसके द्वारा (वस्तु तत्व को) जाना जाता है, उसे प्रमाण कहते हैं। उसका सामान्य लक्षण है - अर्थ की उपलब्धि का हेतु, अर्थात् वस्तु के स्वरूप का ज्ञान ही प्रमाण है। यह ज्ञान हानादिबुद्धि रूप है अर्थात् हेय, ज्ञेय और उपादेय का ज्ञान कराता है। इसके चार प्रकार हैं - जो इस प्रकार हैं :- 1 प्रत्यक्ष, 2 अनुमान, 3 उपमान तथा 4 शब्द प्रमाण। न्याय दर्शन में इन्द्रिय और पदार्थ के सन्निकर्ष से उत्पन्न ज्ञान को प्रत्यक्ष कहते हैं। जो अव्यपदेश, अव्यभिचारी एवं व्यवसायात्मक होता है। इसका अनुक्रम इस प्रकार है - घ्राण आदि इन्द्रियाँ, घट आदि (पंचभूत रूप) पदार्थ, पदार्थ से इन्द्रियों का सन्निकर्ष होना अर्थात् उनका सम्बन्धित होना, उससे उत्पन्न ज्ञान (बोध), जो शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता है। यहाँ प्रत्यक्ष को अव्यपदेश्य मानकर सांख्य मत का खंडन किया गया है, क्योंकि वह प्रत्यक्ष को व्यपदेश्य मानता है। पुनः ज्ञान का ग्रहण होता है, ऐसा मानने से ज्ञान और आत्मा अलग-अलग सिद्ध हुए। जिस प्रकार ज्ञान की प्राप्ति होने से वह आत्मा का स्वरूप लक्षण नहीं होता है, वैसे ही सुख की भी प्राप्ति होने से वह भी आत्मा का स्वरूप लक्षण नहीं है, अतः (उस प्रकार की अनुभूति से उत्पन्न) सुख आदि भी आत्मा से भिन्न हुए। जो ज्ञान शब्दों के द्वारा कहा जा सकता है वह व्यपदेश्य होता है तथा जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001804
Book TitleSarvsiddhantpraveshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2008
Total Pages50
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size3 MB
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