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5 - पक्षाघात-लकवा ( पेरेलिसिस ) - STROKE
57 ब्लडप्रेशर के उचित उपचार और नियमन से हृदयरोग, पक्षाघात और किडनी की बीमारी रोकी जा सकती है । सिस्टोलिक (ऊपर का) ब्लडप्रेशर लगभग १२० और डायस्टोलिक (नीचे का) ब्लडप्रेशर ८०८५ रखना ही श्रेष्ठ उपाय है। केवल ब्लडप्रेशर के सचोट और आजीवन नियमन से ४० से ५० प्रतिशत पक्षाघात और हृदयरोग निश्चित ही रोका जा सकता है, ऐसा समय-समय पर साबित हुआ है। इसलिए ब्लडप्रेशर के नियमन के बारे में जितना कहा और समझा जाए उतना कम है।
आम जनता में ब्लडप्रेशर के विषय में अनेक भ्रम हैं, जैसे कि (१) कुछ मरीज खुद को ब्लडप्रेशर हो सकता है, ये मानने को तैयार ही नहीं होते । उनका कहना है कि "मुझे सिर दर्द नहीं है, और चक्कर भी नहीं आते" आदि । किन्तु सभी ब्लडप्रेशर के मरीजों में यह लक्षण नहीं दिखते हैं । ब्लडप्रेशर के कुछ मरीज़ों को कोइ भी लक्षण नहि होते । (२) कुछ समय तक दवा लेने पर मरीज़ ऐसा मानने लगता है कि अब उसका ब्लडप्रेशर कंट्रोल हो गया है । दवाई चालू रखने के साथ मापने पर प्रेशर नोर्मल रहता है, इसलिये वह दवाई बन्द कर देता है । वह ऐसा मानता है कि उसका प्रेशर हमेशा के लिए ठीक हो गया है, किन्तु यह एक अति भयजनक गलतफहमी है । दवाई बन्द करने के कुछ समय के बाद ब्लडप्रेशर फिरसे बढ़ने लगता है। अंत में मरीज़ पक्षाघात और हृदयरोग की तकलीफ के साथ डॉक्टर के पास पहुँचता है । प्रतिदिन हम ऐसा देखते है, जिससे अतिशय दुःख होता है ।
डायाबिटीस : ब्लडप्रेशर और डायाबिटीस एक दूसरे के भाई जैसे है । वह भी महाभयंकर रोग है । छुपछुपकर प्रवेश करनेवाला यह रोग बहुत तकलीफ देता है । यह रोग हो तो उसका स्वीकार कर के उचित उपचार द्वारा उसका संपूर्ण नियमन अति आवश्यक है । समय-समय पर ब्लडसुगर की जांच करवाते रहना चाहिये, जिससे ब्लडसुगर की मात्रा की जानकारी रहे । डायाबिटीस और बी.पी. के मरीज़ को दवाई के साथ जीवनशैली तथा आहार में भी बहुत परिवर्तन लाकर सावधानी रखनी चाहिए ।
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