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मस्तिष्क और ज्ञानतंतु की बीमारियाँ एपिलेप्सी का उपचार : एपिलेप्सी का कारण जान कर उसका योग्य उपचार होना जरूरी है। इसके अलावा इस रोग को अनियंत्रित होने जैसी परिस्थिति से दूर रहना चाहिए । अतः जागरण, तनाव, भूखे रहने या अधिक मानसिक अथवा शारीरिक श्रम को टालना चाहिए । इसके अलावा उचित दवा लम्बे समय तक लेने से यह रोग निश्चित ही काबू में किया जा सकता है। दवाई अचानक बंध नहि करनी चाहिए । नियमित फॉलो-अप बहुत जरूरी है, जब जरुर पडे तो तुरंत संपर्क करना चाहिए । मिर्गी की मुख्य दवाएं : (१) फिनोबार्बिटोन : उदा. गार्डिनाल, बिटाल (२) फेनीटोइन : उदा. एप्टोइन, डाइलेंटिन, एप्सोलिन (३) कार्बोमेजेपिन : उदा. जेन, जेप्टोल, टेग्रीटाल, मेझेटोल
कार्बाटोल, (४) वालप्रोयेट : उदा. वालपेरिन, एंकोरेट, एपिलेक्स, टोरवेट कार्बोमेजेपिन और वालप्रोयेट में अब नई टेक्नोलोजी के अनुसार स्ला-रिलीज (धीरे व लम्बे समय तक प्रभावी रहने वाला) फोर्मूला भी मिलता है, जैसे कि टेग्रेटाल-सी.आर., वाल्प्रोलसी. आर. आदि । इससे दिन भर दवा का रक्त में प्रमाण समान बना रहता है और दिन में दो ही बार दवा लेनी पड़ती है । वाल्प्रोयेट का नया क्षार डायवालप्रोयेट (e.g. वेलेन्स) अब ज्यादा प्रचलित है। मिर्गी की मुख्य दवाओं के दुष्प्रभावों के बारे में प्रकरण २४ में विस्तृत जानकारी दी गई है ।
रोग के लक्षण व प्रकार के आधार पर चिकित्सक उचित दवा तय करते है। पिछले कुछ वर्षों में इस रोग को लेकर कई नए संशोधन हुए हैं, रोग निवारक नई दवाईयाँ भी खोजी गई हैं । नई शोधों को
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